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उत्तर-हजारो बोल निकल सकते हैं। परन्तु उन सबका छह बोलो मे समावेश करते हैं।
प्रन ३-छह बोल कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-(१) ज्ञान अरूपी है । (२) ज्ञान को कोई काल या क्षेत्र विघ्न नही कर सकता है (३) ज्ञान अविकारी है। (४) ज्ञान चैतन्य चमत्कार-स्वरूप है। (५) ज्ञान पर का कुछ भी नहीं कर सकता है। (६) ज्ञान सर्व समाधान कारक है।
प्रश्न ७-'ज्ञान अरूपी है' यह किस प्रकार है ?
उत्तर-भगवान आत्मा अरूपी है। उसके गुण अरूपी है और उस की पर्याय भी अरूपी है। इसलिए आत्मा का रूपी पदार्थो से किसी भी प्रकार का सम्बन्ध नहीं है।
प्रश्न :--च्या शास्त्रो से, भगवान को दिव्यध्वनि से, गुरु के वचनो से ज्ञान होता है ?
उत्तर--(१) बिल्कुल नही होता है, क्योकि शास्त्र, दिव्यध्वनि, गुरु का शब्द-पुदगल की स्कन्धरूप पर्याय हैं, इनमे ज्ञानपना नही है। इसलिये जो रूपी है और जिसमे ज्ञान नही है ऐसा जो शास्त्र दिव्यध्वनि, शब्द आदि अरूपी ज्ञानघन आत्मा को ज्ञान का कारण वने, ऐसा नही हो सकता है। अत ज्ञान अरूपी है ऐसा सिद्ध होता है (२) यह हजारो शास्त्र हैं, यह स्थूल-स्थूल स्कन्ध है । इनमे वजन है। देखो, हजारो पुस्तको का वजन उठाया नहीं जा सकता लेकिन हजारो पुस्तको का ज्ञान होने मे जरा भी वजन नही लगता । इससे सिद्ध होता है कि "ज्ञान अरूपी है।"
प्रश्न 8-शास्त्रो से, दिव्यध्वनि से, गुरु के वचनो से, द्रव्यकर्म के क्षयोपशमादि से, और ज्ञेयो से ज्ञान होता है, ऐसा शास्त्रो मे क्यो कहा है ?
उत्तर-कहने को तो है वस्तु स्वरूप विचार ने पर उसमे कर्ताकर्म सम्बन्ध नही है झूठा व्यवहार दृष्टि से ही जीव इनका कर्ता है।