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रे कर्म है नहीं ज्ञान, क्योकि कर्म कुछ जाने नहीं। इस हेतु से है ज्ञान अन्य रू, कर्म अन्य जिनवर कहे ।३९७ रे। धर्म नहि है ज्ञान क्योकि धर्म कुछ जाने नहीं। इस हेतु से है ज्ञान अन्य रू, धर्म अन्य जिनवर कहे ॥३६॥ नहिं है अधर्म जु ज्ञान, क्योकि अधर्म कुछ जाने नहीं। इस हेतु से है ज्ञान अन्य, अधर्म अन्य जिनवर कहे 1३६६। रे। काल है नहि ज्ञान, क्योंकि काल कुछ जाने नहीं । इस हेतु से ज्ञान अन्य रू, फाल अन्य प्रभू कहे ।४००। आकाश है नहिं ज्ञान, क्योकि आकाश कुछ जाने नही । इस हेतुसे आकाश अन्य रू, ज्ञान अन्य प्रभू कहे।४०११ रे। ज्ञान, अध्यवसान नहिं क्योकि अचेतन रूप है। इस हेतुसे ज्ञान अन्य रू, अन्य अध्यवसान है ।४०२॥ रे । सर्वदा जाने हि इससे जीव ज्ञायक ज्ञानि है। अरू ज्ञान है ज्ञायक से, अव्यतिरिक्त यों ज्ञातव्य है ।४०३। सम्यक्त्व अरु संयम तथा पूर्वांगत सब सूत्र, जो। धर्माधरम दीक्षा सबहि, बुध पुरुष माने ज्ञान को १४०४। प्रश्न २–कुन्दकुन्द आचार्य ने इन १५ गाथाओ मे क्या बताया
उत्तर-भगवान आत्मा का शास्त्र, शब्द, गुरु का वचन, दिव्यध्वनि किसी प्रकार के आकार के साथ, काला-पीला, नीला, लाल, सफेद रूप के साथ, सुगध, दुर्गन्ध रूप गन्ध के साथ, खट्टा-मीठाकडुआ चपरा-कषायला-रूप रस के साथ, हल्का-भारी ठडा-गरम रुखा चिकना कडा-नरमरूप स्पर्श के साथ, आठ कर्मों के साथ, धर्म-अधर्म,