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________________ ( ५१ ) उत्तर -- वर्तमान के शुभभावो को आगामी काल मे बनाये रखने का भाव और अशुभभाव न आये ऐसा भाव, भविष्यत् के लिए नही आना । अथवा आने पर उन्हे ज्ञयरूप ज्ञान मे लेना, भाव प्रत्याख्यान है । जैसे - वर्तमान सम्मेदशिखर मे बैठे हुए शुभभाव तो आते हैं, अशुभभाव नही आते है, भविष्य के लिए शुभाशुभ भावो का जयरूप ज्ञान में आना, यह भाव प्रत्याख्यान है । 1 प्रश्न ३३ - अप्रत्याख्यान किसे कहते हैं ? उत्तर - आत्मा की जैसी प्रसिद्धि है उसके सन्मुख ना रहकर उसकी मर्यादा का उल्लघन करना अप्रत्याख्यान है । प्रश्न ३४ - भगवान कुन्दकुन्द ने समयसार गाया २८३ से २८५ तक मे अप्रत्याख्यान किसे कहा है ? उत्तर - आगामी काल सम्बन्धी द्रव्यकर्म, नोकर्म और भाव कर्मों की इच्छा रखना, ममत्व रखना, अप्रत्याख्यान है । प्रश्न ३५ – अप्रत्याख्यान के कितने भेद हैं ? उत्तर- दो भेद है - द्रव्य अप्रत्याख्यान और भाव अप्रत्याख्यान । प्रश्न ३६- द्रव्य अप्रत्याख्यान किसे कहते हैं ? उत्तर - वर्तमान मे द्रव्यकर्म - नोकर्म का जैसा सम्बन्ध है । वैसा ही सम्बन्ध भविष्य मे भी बनाए रखने का भाव द्रव्य अप्रत्याख्यान है । जैसे - वर्तमान मे सच्चे देव गुरु-धर्म का सयोग सम्बन्ध है । आगामी काल मे ऐसा ही बना रहे ऐसा भाव, द्रव्य अप्रत्याख्यान है । प्रश्न ३७- भाव अप्रत्याख्यान किसे कहते हैं ? उत्तर - वर्तमान मे जैसे शुभभाव हैं, अशुभभाव नही है । आगामी काल मे ऐसे ही शुभभाव बना रहे तो अच्छा हो वह भाव अप्रत्याख्यान है । जैसे - वर्तमान सम्मेदशिखर मे बैठे हुए शुभभाव तो आते है और अशुभभाव जरा भी नही आते, भविष्य मे भी ऐसे शुभ
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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