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उत्तर -- वर्तमान के शुभभावो को आगामी काल मे बनाये रखने का भाव और अशुभभाव न आये ऐसा भाव, भविष्यत् के लिए नही आना । अथवा आने पर उन्हे ज्ञयरूप ज्ञान मे लेना, भाव प्रत्याख्यान है । जैसे - वर्तमान सम्मेदशिखर मे बैठे हुए शुभभाव तो आते हैं, अशुभभाव नही आते है, भविष्य के लिए शुभाशुभ भावो का जयरूप ज्ञान में आना, यह भाव प्रत्याख्यान है ।
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प्रश्न ३३ - अप्रत्याख्यान किसे कहते हैं ?
उत्तर - आत्मा की जैसी प्रसिद्धि है उसके सन्मुख ना रहकर उसकी मर्यादा का उल्लघन करना अप्रत्याख्यान है ।
प्रश्न ३४ - भगवान कुन्दकुन्द ने समयसार गाया २८३ से २८५ तक मे अप्रत्याख्यान किसे कहा है ?
उत्तर - आगामी काल सम्बन्धी द्रव्यकर्म, नोकर्म और भाव कर्मों की इच्छा रखना, ममत्व रखना, अप्रत्याख्यान है ।
प्रश्न ३५ – अप्रत्याख्यान के कितने भेद हैं ?
उत्तर- दो भेद है - द्रव्य अप्रत्याख्यान और भाव अप्रत्याख्यान । प्रश्न ३६- द्रव्य अप्रत्याख्यान किसे कहते हैं ?
उत्तर - वर्तमान मे द्रव्यकर्म - नोकर्म का जैसा सम्बन्ध है । वैसा ही सम्बन्ध भविष्य मे भी बनाए रखने का भाव द्रव्य अप्रत्याख्यान है । जैसे - वर्तमान मे सच्चे देव गुरु-धर्म का सयोग सम्बन्ध है । आगामी काल मे ऐसा ही बना रहे ऐसा भाव, द्रव्य अप्रत्याख्यान है ।
प्रश्न ३७- भाव अप्रत्याख्यान किसे कहते हैं ?
उत्तर - वर्तमान मे जैसे शुभभाव हैं, अशुभभाव नही है । आगामी काल मे ऐसे ही शुभभाव बना रहे तो अच्छा हो वह भाव अप्रत्याख्यान है । जैसे - वर्तमान सम्मेदशिखर मे बैठे हुए शुभभाव तो आते है और अशुभभाव जरा भी नही आते, भविष्य मे भी ऐसे शुभ