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प्रश्न २७ - भगवान कुन्द कुन्द ने समयसार मे प्रत्याख्यान किसे कहा है ?
उ०- शुभ अरू अशुभ भावी करम का बंध हो जिनभाव मे । उनसे निर्वतन जो करे वो आतमा पचखाण है ॥ ३८४॥ अर्थ -- भविष्य मे दोष लगने का त्याग करना, सो प्रत्याख्यान है । इसलिए निश्चय से विचार करने पर जो आत्मा भविष्यत् काल के द्रव्यकर्म, नोकर्म और भावकर्मों से अपने को भिन्न जानता है, श्रद्धा करता है, और अनुभव करता है, वह आत्मा स्वय ही प्रत्याख्यान है ।
प्रश्न २८ - समयसार गा० ३४ व ३५ मे "ज्ञान ही प्रत्यास्थान है" ऐसा क्यो कहा है ?
उत्तर- 'सब भाव पर ही जान, प्रत्याख्यान भावो का करे । इसमे नियम से जानना कि, ज्ञान प्रत्याख्यान है ||३४|| ये और का है जानकर, पर द्रव्य को को नर तजे । त्यो और के हैं जानकर पर भाव ज्ञानी परित्यजे ||३५||
अर्थ - जिससे अपने 'अतिरिक्त सर्व पदार्थो को पर है' ऐसा जानकर प्रत्याख्यान करता है - त्याग करता है । उसमे प्रत्याख्यान ज्ञान ही है । ऐसा नियम से जानना । अपने ज्ञान मे त्यागरूप अवस्था ही प्रत्याख्यान है, दूसरा कुछ नही ||३४|| जैसे - लोक मे कोई पुरुष पर वस्तु को "यह पर वस्तु है" ऐसा जाने तो पर वस्तु का त्याग करता है । उसी प्रकार ज्ञानी पुरुष समस्त पर द्रव्यो के भावो को "यह पर भाव है" ऐसा जानकर उनको छोड देता है ।
प्रश्न २६ - फलश टीका कलश २६ मे पंडित राजमलजी ने प्रत्याख्यान किसे बताया है ?
उत्तर - जैसे -- किसी पुरुष ने धोबी के घर से अपने वस्त्र के धोखे मे दूसरे का वस्त्र आने पर बिना पहिचान के उसे पहिन कर अपना जाना, बाद मे उस वस्त्र का धनी जो कोई था । उसने अचल