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( ४८ ) करने योग्य है । स्वभाव के आश्रय से शुद्ध वीतराग दशा प्रकट करने योग्य उपादेय है । ज्ञानियो को भूमिकानुसार जो राग होता है। उसे ज्ञानी हेय-ज्ञय जानते है परन्तु अज्ञानी अनादि से एक एक समय करके वर्तमान मे देव-गुरु-शास्त्र के सयोगो को, वर्तमान के शुभभावो को अच्छा मानकर पागल बना रहता है और इन्हे मोक्षमार्ग मानता है। आचार्य भगवान कहते है कि अपनी आत्मा का अनुभव ना होने से शुभ अच्छा, अशुभ बुरा, यह अनन्त ससार का कारण है और महान पाप है।
प्रश्न २५–कुन्दकुन्द भगवान ने प्रत्याख्यान का स्वरूप नियमसार में क्या बताया है ?
उत्तरभावी शुभाशुभ छोड़कर, तजकर वचन विस्तार रे। जो जीव ध्याता आत्म, प्रत्याख्यान होता है उसे ॥६॥ कैवल्य दर्शन-ज्ञान-सुख कैवल्य शक्ति स्वभाव जो। मैं हूं वहीं, यह चिन्तवन होता निरन्तर ज्ञानि को ॥६६॥ निज भाव को छोड़े नही, किचित् ग्रहे पर भाव नहिं । देखे व जाने मै वही, ज्ञानी करे चिन्तन यही ॥१७॥ जो प्रकृति स्थिति अनुभाग और प्रदेश बंध विन आत्मा। मै हू वही, यो भावता ज्ञानी करे स्थिरता वहाँ ॥६॥ मम ज्ञान मे है आत्मा, दर्शन चरित्र मे आतमा। हैं और प्रत्याख्यान सवर, योग मे भी आतमा ॥१०॥ दगज्ञान-लक्षित और शाश्वत मात्र आत्मा मम अरे। अरू शेष सब संयोग लक्षित भाव मुझसे हैं परे॥१०२॥ प्रश्न ३६-प्रत्याख्यान किसे कहते है ?
उत्तर-आत्मा की वैसी प्रसिद्धि है वैसी ही उसकी मर्यादा मे (स्वभाव सन्मुख) रहना उसे प्रत्याख्यान कहते है।