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( ४७ ) भावआलोचना है। जैसे सम्मेदशिखर मे बैठे हुए वर्तमान मे होने वाले शुभ अशुभ भावो को शेयरूप ज्ञान मे लेना यह भाव आलोचना
प्रश्न १६-अनालोचना किसे कहते हैं ?
उत्तर-अपने स्वरूप की मर्यादा मे रहकर नही जानना अनालोचना है।
प्रश्न २० - भगवान कुन्दकुन्द ने समयसार मे अनालोचना किसे
उत्तर-वर्तमान काल मे जिन द्रव्यकर्म नोकर्म और भावकर्म को ग्रहण किया है। उन्हे वर्तमान मे अच्छा समझना, उनके सस्कार रहना उनके प्रति ममत्व रखना अनालोचना है।
प्रश्न २१-अनालोचना के कितने भेद हैं ? उत्तर- दो भेद-द्रव्य अनालोचना और भाव अनालोचना। प्रश्न २२-व्रव्य अनालोचना किसे कहते हैं ?
उत्तर-- वर्तमान मे वर्तमान के सयोग सम्बन्धो को इष्ट-अनिष्ट मानना द्रव्य अनालोचना हैं। जैसे गिरनार पर बैठे हुए वहाँ के सयोग सम्बन्धो की (पाँचवी टोक-चौथी टोक की) चाहना करना और बरे सयोग सम्बन्धो की चाहना न करना यह द्रव्य अनालोचना है।
प्रश्न २३-भावअनालोचना किसे कहते हैं ?
उत्तर-वर्तमान में वर्तमान के शुभाशुभ भावो को इण्ट-अनिष्ट मानना भाव अनालोचना है । जैसे गिरनार पर्वत पर बैठे हए वर्तमान के दया-दान-पूजा-अणुव्रत-महाव्रतादि भावो को इण्ट मानना और अनिष्टभाव तनिक भी ना आवे यह भाव अनालोचना है। [समयसार कलग २२७]
प्रश्न २४-वर्तमान मे हमको सच्चेदेव-गुरु-शास्त्र का संयोग मिला, शुभभाव का अवसर मिला, क्या इसे भी हम अच्छा न माने ?
उत्तर-वास्तव मे एक मात्र अपनी आत्मा ही भूतार्थ आश्रय