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उत्तरनोकर्म, कर्म, विभाव, गुण पर्याय विरहित आतमा । ध्याता उसे, उस श्रमण को होती परम-आलोचना ॥१०७॥ समभाव मे परिणाम स्थापे और देखे आतमा। जिनवर वृषभ उपदेश मे वह जीव है आलोचना ॥१०॥ जड़कर्म-तरू-जड़नाश के सामथ्यरूप स्वभाव है। स्वाधीन निज समभाव आलूछन वही परिणाम है ॥११०॥ प्रश्न १४-आलोचना किसे कहते हैं ?
उत्तर-अपने स्वरूप की (परम पारिणामिक भाव की) मर्यादा में रहकर ज्ञान करना आलोचना है।
प्रश्न १४-भगवान कुन्दकुन्द ने समयसार मे आलोचना किसे कहा है ? उ०-शुभ और अशुभ अनेक विध है उदित जो इस काल में ।
उन दोषको जो चेतता, आलोचना वह जीव है।३८॥ अर्थ-वर्तमान दोष से आत्मा को पृथक करना सो आलोचना है। इसलिए निश्चय से विचार करने पर जो आत्मा वर्तमान काल के द्रव्य कर्म, नोकर्म और भावकर्मों से अपने को भिन्न जानता है, श्रद्धा करता है और अनुभव करता है वह आत्मा स्वय ही आलोचना है।
प्रश्न १६-आलोचना के कितने भेद हैं ? उत्तर-दो भेद है-द्रव्य आलोचना और भाव आलोचना । प्रश्न १७-द्रव्यआलोचना किसे कहते हैं ?
उत्तर-वर्तमान मे वर्तमान के सयोग सम्वन्ध ज्ञयरूप ज्ञान मे आना द्रव्य आलोचना है। जैसे-सम्मेदशिखर मे बैठे हुए वर्तमान के सयोग सम्बन्ध को (नन्दीश्वरदीप की रचना, २४ टोको, ज्ञानी ध्यानियो को) ज्ञय रूप ज्ञान मे लेना, यह द्रव्य आलोचना है।
प्रश्न १५-भावआलोचना किसे कहते हैं ? उत्तर-वर्तमान मे हुए शुभाशुभ भावो को शेयरूप ज्ञान मे लेना