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हण किया था। उन्हे वर्तमान मे अच्छा समझना, उनके सस्कार हना, उनके प्रति ममत्व रहना अप्रतिक्रमण है। प्रश्न :-अप्रतिक्रमण के कितने भेद हैं ? उत्तर-दो भेद हैं-द्रव्य अप्रतिक्रमण और भाव अप्रतिक्रमण । प्रश्न १०-द्रव्य अप्रतिक्रमण किसे कहते हैं ?
उत्तर-वर्तमान समय मे भूतकाल के गुजरे हुए सयोगो को इष्टभनिष्ट मानना द्रव्य अप्रतिक्रमण है । जैसे-दिल्ली मे बैठे हुए कोई जीव विचार कर रहा है कि सम्मेदशिखर-गिरनार-ज्ञानी-ध्यानियो का सयोग मुझे सदैव बना रहे और अनिष्ट सयोग कभी न रहे यह दव्य अप्रतिक्रमण है।
प्रश्न ११-भाव अप्रतिक्रमण किसे कहते हैं ?
उत्तर-वर्तमान मे भूतकाल के शुभाशुभ भावो को इष्ट-अनिष्ट मानना भाव अप्रतिक्रमण है। जैसे-दिल्ली मे बैठे हुए कोई जीव सम्मेदशिखर और गिरनार मे किये हुए शुभाशुभ भावो मे अशुभभाव जरा भी न होवे और शुभभावो को बनाये रखने का भाव यह भाव अप्रतिक्रमण है। [समयसार कलश २२६ देखिये]
प्रश्न १२-प्रतिक्रमण से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-अनादिकाल से अज्ञानी भूतकाल की पर वस्तुओ को और शुभाशुभ भावो को स्मरण करके उन्हे इष्ट-अनिष्ट मानकर मिथ्यात्व की पुष्टि कर रहा था, तो सतगुरु कहते हैं कि हे जीव । भूतकाल सम्बन्धी द्रव्य कर्म, नोकर्म भावकर्म से दृष्टि उठाकर एकमात्र अपने भूतार्थ स्वभाव पर दृष्टि दे, तो ज्ञेय-ज्ञायकपना प्रकट हो और शान्ति की प्राप्ति हो।
प्रश्न १३-कुन्दकुन्द भगवान ने पालोचना का स्वरूप नियमसार में क्या बताया है ?