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प्रश्न ३- भगवान कुन्दकुन्द ने समयसार में प्रतिक्रमण किसे कहा है ?
उत्तर - शुभ और अशुभ अनेक विध, के कर्म पूरव जो किए। उनसे निवर्ते आत्म को, वो आत्मा प्रतिक्रमण है || ३८३ ॥ अर्थ - पहले लगे हुए दोषो से आत्मा को निवृत्त करना सो प्रतिक्रमण है । इसलिए निश्चय से विचार करने पर, जो आत्मा भूतकाल के कर्मो से अपने को भिन्न जानता, श्रद्धा करता और अनुभव करता है, वह आत्मा स्वय हो प्रतिक्रमण है ।
प्रश्न ४ - प्रतिक्रमण के कितने भेद है ?
उत्तर- दो भेद है - द्रव्य प्रतिक्रमण और भाव प्रतिक्रमण । प्रश्न ५ - द्रव्य प्रतिक्रमण किसे कहते हैं ?
उत्तर - वर्तमान मे भूतकाल के सयोगो को ज्ञेय रूप जानना द्रव्य प्रतिक्रमण है । जैसे- दिल्ली मे बैठे हुए ज्ञानी को सम्मेदशिखर, गिरनार, ज्ञानी ध्यानियो का विचार आने पर उन सयोगो को ज्ञ ेय रूप जानना वह द्रव्य प्रतिक्रमण है ।
प्रश्न ६ - भाव प्रतिक्रमण किसे कहते हैं ?
उत्तर - वर्तमान मे भूतकाल के शुभाशुभभावो को शेयरूप ज्ञान में लेना भावप्रतिक्रमण है । जैसे- दिल्ली मे बैठे हुए ज्ञानी को सम्भेदशिखर और गिरनार मे किये गये शुभाशुभभावो का ध्यान आने पर शुभाशुभभावो को ज्ञयरूप जानना यह भाव प्रतिक्रमण है ।
प्रश्न ७ - अप्रतिक्रमण किसे कहते हैं ?
उत्तर - प्रमाद के वश होकर स्वस्थान को छोड़कर परस्थान मे गया हो, फिर वहाँ से अपने स्थान मे वापस नही आना उसे अप्रतिक्रमण कहते हैं ।
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प्रश्न - श्री कुन्दकुन्द भगवान ने समयसार गाथा २८३ २८५ तक में अप्रतिक्रमण किसे कहा है ?
उत्तर - अतीतकाल मे जिन द्रव्यकर्म, नोकर्म और भावकर्म को