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सम्यकदर्शनादि की प्राप्ति कर मोक्ष का पथिक बन जावेगा।
प्रश्न ४६-क्या मनुष्यभव होने पर 'तियंच' कहला सकता है ?
उत्तर-मनुष्यभव होने पर भी जो जीव 'मायातैर्यग्योनस्य' अर्थात माया छल कपट करता है वह जीव उस समय तिर्यंच ही है, क्योकि 'जैसी मति वसी गति' होती है। माया छल-कपट के समय यदि आयु का बन्ध हो गया तो तिर्यंच की योनि मे जाना पडेगा । जहाँ पर निरन्तर छल-कपट के भावो मे ही पागल बना रहेगा।
प्रश्न ४७-कोई कहे हमें तिर्यंच की योनि मे ना जाना पड़े इसके लिये क्या करें?
उत्तर-छल-कपट रहित तेरा स्वभाव है। उसका आश्रय ले, तो तियंच की योनि मे नही जाना पडेगा। बल्कि सम्यक्त्वादि की प्राप्ति कर क्रम से मुक्ति रूपी सुन्दरी का नाथ बन जावेगा।
प्रश्न ४८-क्या मनुष्यभव होने पर 'देव' कहला सकता है ?
उत्तर-जो जीव मनुष्यभव होने पर अपनी आत्मा का अनुभव हुए विना शुक्ललेश्या आदि शुभभाव करता है। वह उस समय देव ही है क्योकि 'जैसी मति वैसी गति' होती है और ऐसे महान् शुभभाव के समय आयु का बन्ध हो गया तो सम्यक्त्व रहित देव की योनि मे जाना पडेगा जहाँ निरन्तर आकुलता का सेवन करता हुआ दुखी होता रहेगा।
प्रश्न ४६-कोई कहे भाई सम्यक्त्व रहित देव की पर्याय हमको न मिले इसका क्या उपाय है ?
उत्तर-महान शुभभाव रहित आत्मा का स्वभाव है। उसका आश्रय ले । तो धर्म की प्राप्ति होकर क्रम से वृद्धि करके पूर्ण परमात्म दशा की प्राप्ति हो जावेगी।
प्रश्न ५०-मनुष्यभव होने पर 'मनुष्यभव का भाव क्या है ?
उत्तर-जो जीव मनुष्यभव होने पर मन्दकषायरूप कभी शुभभाव कभी अशुभ करता है वह उस समय मनुष्य ही है, क्योकि 'जैसी मति