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________________ प्रश्न ४२-क्या मनुष्यभव होने पर 'चारइन्द्रिय जीव' कहला सकता है ? उत्तर-जैसे-मक्खी, डाँस, मच्छर, भिरड, भ्रमर, पतगा आदि रूप के विषय मे पागल है; उसी प्रकार मनुष्यभव होने पर भी जो जीव रूप बनाने मे, सिनेमा आदि देखने मे पागल है। वह उस समय चार इन्द्रिय का ही जीव है, क्योकि "जैसी मति वैसी गति" होती है। यदि उस समय आयु का बन्ध हो गया तो चार इन्द्रिय की योनि मे जाना पडेगा। जहां निरन्तर रूप में पागल रहेगा। प्रश्न ४३---कोई कहे हमे चार इन्द्रिय ना बनना पडे इसका क्या उपाय है ? उत्तर-रूप के देखने मे पागलपन से रहित अवर्ण स्वभावी भगवान आत्मा स्वय है। उसका आश्रय ले तो चार इन्द्रिय की योनि मे नहीं जाना पड़ेगा। बल्कि अवर्ण स्वभाव पर्याय में प्रगट हो जावेगा। प्रश्न ४४-क्या मनुष्यभव होने पर नारकी' कहला सकता है ? उत्तर-जो जीव मनुष्यभव होने पर भी सात व्यसनो को, पाँच पापो रूप महान तीन अशुभभावो के सेवन मे मग्न हैं, वह उसी समय 'नारकी' ही है क्योकि 'जैसी मति वैसी गति' होती है। यदि तीव्र अशुभभावों के समय आयु का वन्ध हो गया तो नारकी की योनि मे ' जाना पडेगा । जहाँ एक-एक समय करके निरन्तर परस्पर एक-दूसरे से क्रोध करते हुए वचनप्रहार, शस्त्रप्रहार, कायप्रहार आदि से कष्ट देते व सहते रहते है । वहाँ कुछ खाने को मिलता नहीं, पीने को पानी मिलता नही, क्षुधा-तृषा से निरन्तर व्याकुल रहते है। प्रश्न ४५---कोई कहे हमे नारकी ना बनना पड़े इसका क्या उपाय है? उत्तर-शुभाशुभभाव रहित आत्मा का त्रिकाली स्वभाव है। उसका आश्रय ले तो नारकी की योनि मे नही जाना पडेगा। बल्कि कुछ खाने कार कायप्रहार आर एक-दूसरे
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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