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________________ कहला सकता है ? उत्तर-जैसे-सीप, शख, कौडी, केंचुआ, लट आदि रसना इन्द्रिय मे मग्न हैं, उसी प्रकार जो जीव मनुष्य भव पाने पर रसना के स्वाद मे पागल हो रहा है । वह उस समय दो इन्द्रिय जीव ही है, क्योकि "जैसी मति वैसी गति" होती है। रसना के स्वाद मे पागल के समय यदि आयु का बध हो गया तो दो इन्द्रियो मे उत्पन्न होना पडेगा, जहाँ निरतर रस के स्वाद मे ही पागल बना रहेगा। प्रश्न ३६-कोई कहे हमे दो इन्द्रिय की योनि मे ना जाना पड़े इसका कोई उपाय हैं ? उत्तर-रसना इन्द्रिय के स्वाद रहित अरस स्वभावी भगवान आत्मा है। उसका आश्रय ले तो दो इन्द्रिय की योनि में नही जाना पडेगा । बल्कि अरस स्वभाव पर्याय मे प्रगट हो जावेगा। प्रश्न ४०-या मनुष्यभव होने पर 'तीन इन्द्रिय' कहला सकता है ? उत्तर-जैसे-चीटी, बिच्छू, घुन, खटमल, जूं आदि नाणेन्द्रिय मे पागल हैं; उसी प्रकार मनुष्यभव पाने पर भी जो जीव सुगध का सम्बन्ध मिलाने और दुर्गन्ध को हटाने मे पागल बना रहता है । वह उस समय तीन इन्द्रिय जीव ही है, क्योकि "जैसी मति वैसी गति" होती है। यदि उस समय आयु का बध हो गया तो तीन इन्द्रिय की योनि में जाना पडेगा। जहां निरन्तर घ्राण इन्द्रिय के विषय में ही पागल बना रहेगा। प्रश्न ४१-कोई कहे हमे तीन इन्द्रिय की योनि में न जाना पड़े ऐसा उपाय बताओ? उत्तर-सुगन्ध-दुर्गन्ध की इच्छा रहित अगंधस्वभावी भगवान आत्मा है। उसका आश्रय ले तो तीन इन्द्रिय की योनि मे नही जाना पडेगा । बल्कि अगध स्वभाव पर्याय मे प्रगट हो जावेगा।
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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