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पर ऊपर से चिकनी चुपडी बाते करता है । अन्दर कपट रखता है । वह जीव उस समय 'जलकाय' ही है क्योकि "जैसी मति वैसी गति" होती है । ऐसे भाव के समय यदि आयु का वन्ध हो गया तो 'जल'काय' की योनि में जाना पडेगा ।
३१ - कोई कहे हमे 'जलकाय' न बनना पड़े, उसका कोई
प्रश्न उपाय है ?
आत्मा का स्वभाव है । उसका नही जाना पडेगा, बल्कि मुक्ति
उत्तर- छल कपट रहित तेरी आश्रय ले, तो जलकाय की योनि मे रूपी सुन्दरी का नाथ वन जावेगा ।
इन ३२ - क्या मनुष्यभव होने पर 'अग्निकार्य' कहला सकता
उत्तर -- जैसे- रोटी बनाने के बाद तवे को उतारते है । तो तवे मे टिम - टिम की चिंगारियां दिखाती हैं। लोग कहते हैं कि तवा हँसता है | परन्तु वह वास्तव मे अग्निकाय के जीव हैं, उसी प्रकार जो मनुष्य भव पाने पर दूसरो को बढता हुआ देखकर ईर्ष्या करता है । उस समय वह जीव 'अग्निकाय' ही है, क्योकि "जैसी मति वैसी गति" होती है । यदि उस समय आयु का वन्ध हो गया तो 'अग्निकाय' की योनि में जाना पडेगा । जहाँ निरन्तर जलने में ही जीवन बीतेगा |
प्रश्न ३३ -- कोई कहे अरे भाई हमे 'अग्निकाय' की योनि मे ना जाना पड़े। ऐसा कोई उपाय है ?
उत्तर- ईर्ष्या रहित त्रिकाली स्वभाव है । उसका आश्रय ले, तो अग्निकाय की योनि मे नही जाना पडेगा । बल्कि पर्याय में तीन लोक का नाथ कहलायेगा ।
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प्रश्न ३४ - क्या मनुष्यभव होने पर 'वायुकाय' कहला सकता
है ?
उत्तर - जैसे- हवा के झोके कभी तेज कभी मन्द चलते रहते है, स्थिर नही रहते है, उसी प्रकार जो मनुष्य भव पाने पर भी जहाँ