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है । उसको प्राप्ति हमें ना हो, उसके लिए हम क्या करें ?
उत्तर- (१) अज्ञान मोह अधकार रहित (२) देव-गुरु-शास्त्र की विराधना रहित, (३) नए-नए भेपो मे अपनेपने की मान्यता रहित अनादिअनन्त तेरा स्वभाव है । उसका आश्रय ले, तो निगोद मे नही जाना पड़ेगा, बल्कि सादिसान्त है जो साधक दशा है। उसकी प्राप्ति होकर मादिअनन्त जो साव्यदणा है उसकी प्राप्ति हो जावेगी । प्रश्न २८ -- क्या मनुष्यभव होने पर 'पृथ्वीकार्य' कहला सकता
है ?
उत्तर - जैसे - हम पृथ्वी काय पर चलते हैं दबने से जो दुख का वह अनुभव करता है, लेकिन वह कुछ नही कह सकता है; उसी प्रकार मनुष्य भव होने पर में सबको दबाऊ और कोई मेरे सामने एक शब्द भी उच्चारण ना कर सके। ऐसा भाव करता है उस समय वह पृथ्वी काय ही है क्योकि " जैसी मति वैसी गति" होती है । ऐसे भाव के समय यदि आयु का वध हो गया तो 'पृथ्वीकाय' की योनि मे जाना पडेगा । जहाँ निरन्तर तुझे सव दवायेगे और तू एक शब्द भी उच्चारण न कर सकेगा ।
प्रश्न २६ - कोई कहे हमे 'पृथ्वीकार्य' न बनना पड़े, उसका क्या उपाय है ?
उत्तर - मैं सबको दबाऊ और कोई मेरे सामने एक शब्द भी उच्चारण ना कर सके, ऐसे भाव रहित अस्पर्श स्वभावी भगवान आत्मा है । उसका आश्रय ले तो भगवानपना पर्याय मे प्रकट हो जावेगा ।
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प्रश्न ३०-- - दया मनुष्यभव होने पर 'जलकाय' कहला सकता
है ?
उत्तर—जैसे—तालाब का पानी ऊपर से देखने पर एक जैसा लगता है । लेकिन कही दो गज का खड्डा है, कही तीन गज का खड्डा है | कही ऊचा है, कही नीचा है; उसी प्रकार मनुष्य भव होने