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प्रश्न १८ – क्या मनुष्य भव होने पर "बकरा" कहला सकता है ? उत्तर -- जैसे बकरा चौबीस घण्टे "में में" करता है, उसी प्रकार जो जीव मनुष्य भव पाने पर "मैं में" करता रहता है । वह उस समय बकरा ही है क्योकि "जैसी मति वैसी गति" होती है। 'मैं-मैं' भाव के समय यदि आयु का बन्ध हो गया, तो बकरे की योनि मे जाना पडेगा । जहाँ निरन्तर "मैं-मैं" मे ही जीवन बीतेगा ।
प्रश्न १६ - कोई कहे " बकरे " की योनि तो खराब है, जिससे हम बकरा न बने । उसका कोई उपाय है ?
उत्तर- "मैं-मैं" के भाव रहित अपना पारिणामिकभाव है । उसका आश्रय ले, तो बकरा नही बनना पडेगा, बल्कि औदयिकभावो का अभाव होकर औपशमिक, धर्म का क्षायोपशमिक और क्षायिकदशा की प्राप्ति हो जावेगी ।
प्रश्न २० - क्या मनुष्य भव होने पर "बिल्ली" कहला सकता है ?
उत्तर - जैसे - बिल्ली को चौबीसो घण्टे चूहो को मारकर खाने का भाव रहता है, उसी प्रकार जो जीव मनुष्यभव होने पर दूसरो को मार कर खाने का भाव रखता है। वह उस समय 'बिल्ली' ही है " जैसी मति वैसी गति" होती है । दूसरो को मारकर खाने के भाव के समय यदि आयुका बन्ध हो गया तो भाई । बिल्ली की योनि मे जाना पडेगा । जहाँ निरन्तर चूहो को मारकर खाने के ही भावो मे पागल बना रहेगा ।
प्रश्न २१ - कोई कहे हमे 'बिल्ली' नहीं बनना है, क्योकि गृद्धि का भाव बहुत बुरा है ?
उत्तर - दूसरो को मारकर खाने के भावरहित अपना ज्ञायक स्वभाव है । उसका आश्रय ले, तो बिल्ली नही बनना पड़ेगा । बल्कि तेरी गिनती पचपरमेष्टियो मे होने लगेगी ।