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________________ ( ३२ ) भौंकता ही रहता है उसी प्रकार मनुष्य भव प्राप्त होने पर जो जीव भीकता ही रहता है। वह उस समय कुत्ता ही है क्योकि "जैसी मति वैसी गति" होती है भौंकने के भाव के समय यदि आयु का वन्ध हो गया तो "कुत्ता की योनि में जाना पडेगा। जहाँ निरन्तर चौवीस घण्टे मे "भी भाँ मे ही जीवन वीतेगा। प्रश्न १५-कोई कहे अरे भाई कुत्ता की योनि तो वहुत खराब है, हमको कुत्ता न बनने पड़े । उसका क्या उपाय है ? उत्तर-विपयो की आसक्ति के भाव से रहित, और "भौ भौं" के भावो से रहित अपना त्रिकाली स्वभाव है। उसका आश्रय ले तो 'कुत्ता' नहीं बनना पडेगा। वल्कि द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भाव ऐसे पच परावर्तन रूप ससार का अभाव होकर क्रम से सिट्टत्व की प्राप्ति होगी। प्रश्न १६-क्या मनुष्य भव होने पर 'मेंढ़क' कहला सकता है ? उत्तर-जैसे- मेढक 'टर टर' करता रहता है, उसी प्रकार जो मनूप्य भव पाने पर सव कार्यों से 'टर टर' करता है। वह उस समय 'मेढक' ही है, क्योकि "जैसी मति, वैसी गति" होती है । "टर टर" भाव करने के समय यदि आयु का बन्ध हो गया, तो "मेढक की योनि मे जाना पडेगा। जहा निरन्तर चौवीसो घण्टे 'टर टर' मे ही जीवन बीतेगा। प्रश्न १७-कोई कहे अरे भाई हमें मेढ़क नहीं बनना है, क्योकि मेढ़क की योनि अच्छी नही है ? उत्तर-अरे भाई । "टर टर" रहित अपने त्रिकाली भगवान का स्वभाव है। उसका आश्रय ले, तो मेढक नही बनना पडेगा । बल्कि चारो गतियो का अभाव होकर पचमगति का मालिक बन जावेगा। इसलिए हे भव्य । तू एक वार अपने स्वभाव की दृष्टि कर, फिर देख क्या होता है, किसी से पूछना नहीं पड़ेगा।
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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