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किसी के परिणमित कराने से परिणमित नही होती है।" ऐसा जानेश्रद्धान करे तो तुरन्त दृष्टि अपने ज्ञायक स्वभाव पर आ जाती है। लानी पडती नहीं है क्योकि यह कार्य सहजरूप है ।
प्रश्न १२--क्या मनुष्य भव होने पर 'गधा' कहला सकता है ?
उत्तर-मनुष्यभव होने पर जैसे हमारे घर मे बहुत आदमी है। वे फं फॉ से ता मानते नहीं है। उसके बदले उन्हे लातो से मारे चिल्लाये। तो वह उस समय मनुष्यभव होने पर 'गधा' ही है, क्योकि "जैसी मति वैसो गति" होती है । दुलत्ती चलाने के भाव के समय यदि आयु का बन्ध हो गया तो गधे की योनि मे जाना पड़ेगा । जहाँ निरन्तर दुलत्तो चलाना और भौकने मे ही जीवन बीतेगा।
प्रश्न १३--कोई कहे, अरे भाई हमे गधा नहीं बनना है क्योकि गधे की योनि बहुत बुरी है, तो वह क्या करे?
उत्तर - दुलत्ती चलाने और भौकने के भाव रहित अपनी आत्मा का स्वभाव है। उसका आश्रय ले तो गधा नही बनना पडेगा। बल्कि मोक्षरूपीलक्ष्मी का नाथ बन जावेगा और ससार के मिथ्यात्व, अविरात प्रमाद, कपाय और योग पाँच ससार के कारणो का अभाव हो जावेगा। इसलिये हे भव्य । तू दुलत्ती और भौकने रहित अपने ज्ञायक भगवान का आश्रय ले, तो भगवान के समान ज्ञाता-दृष्टि बुद्धि प्रगट हो जावे और ससार के सम्पूर्ण दु ख का अभाव हो जावे।
प्रश्न १४ - क्या मनुष्यभव होने पर "कुत्ता" कहला सकता है ?
उत्तर--(अ) जैसे कुत्ता हड्डी मे से खून निकलता है, ऐसा मान कर उसीमे आसक्त रहता है, उसी प्रकार जो जीव मनुष्यभव पाने पर पाँच इन्द्रियो के विषयो मे सुख है । ऐसा मानकर उसी मे आसक्त रहता है । वह उस समय कुत्ता ही है क्योकि “जैसी मति वैसी गति" होती है । पाँच इन्द्रियो की आसक्ति के समय यदि आयुका बन्ध हो गया तो "कुत्ता" की योनि मे जाना पडेगा जहाँ निरन्तर विषयो की आसक्ति मे ही पागल बना रहेगा। (आ) जैसे कुत्ता वगैर बात के