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________________ ( २७ ) गुण हैं । आत्मा मे ज्ञान नाम का एकगुण है। उसकी केवलज्ञान रूप एक पर्याय है। उसमे आठ नम्बर तक जो ज्ञय है, वह एक समय में ज्ञेय रूप से जाना जाता है । ऐसी ताकत केवलज्ञान की एक पर्याय मे है। यदि ऐसे-ऐसे अनन्त विश्व हो, तो भी वे मेरे केवलज्ञान की पर्याय मे ज्ञेय हो सकते हैं। एक समय की पर्याय की कितनी ताकत है और केवलज्ञान, केवलज्ञान ऐसी अनन्त पर्यायें हैं। (१०) जब केवलज्ञान की इतनी ताकत है । तो जिसमे से केवलज्ञान आता है उस ज्ञान गुण के ताकत की मर्यादा का क्या कहना है, अमर्यादित ताकत है । (११) ज्ञान गुण जैसे अनन्तगुण मेरे में हैं। मैं उन अनन्त गणो का स्वामी ह ऐसी अपनी महिमा समझ मे आ जावे, तो जो अनादि से नौ प्रकार के पक्षो की महिमा है। उसका अभाव होकर धर्म की शुरूआत होकर वृद्धि होकर निर्वाण का पथिक बने । प्रश्न ४६-नो प्रकार का पक्ष कौन-कौन सा है ? उत्तर--(१) अत्यन्त भिन्न पर पदार्थों का पक्ष (२) आख-नाक कान आदि औदारिक शरीर का पक्ष (३) तैजस-कार्माणशरीर का पक्ष (४) भाषा और मनका पक्ष (५) शुभाशुभविकारी भावो का पक्ष (६) अपूर्ण-पूर्ण शुद्धपर्याय का पक्ष (७) भेदनय का पक्ष (८) अभेदनय का पक्ष (8) भेदाभेद नय का पक्ष। प्रश्न ४७-नौ प्रकार के पक्ष को स्पष्ट रूप से समझाइये ? उत्तर-जैन सिद्धान्त प्रवेश रत्नमाला भाग ३ के पहले पाठ से देखिएगा। सस्यक्त्व को दुर्लभता काल अनादि है, जीव भी अनादि है और भव-समुद्र भी अनादि है; परन्तु अनादिकाल से भव-समुद्र मे गोते खाते हुए है इस जीव ने दो वस्तुयें कभी प्राप्त नहीं फी-एक तो श्री जिनवर देव और दूसरा सम्यक्त्व। [परमात्म-प्रकाश] - -
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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