SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २५ ) उत्तर- (१) स्वानुभूत्या चकासते - सवर - निर्जरा । (२) स्वानुभूत्या चकासते से विरुद्ध - आस्रव बध, पुण्य-पाप । (३) चित्स्वभावाय भावाय - जीव । ( ४ ) चित्स्वभावाय भावाय से विरुद्धअजीव । (५) सर्वभावान्तरच्छिदे - मोक्ष । चित्स्वभावाय भावाय का आश्रय लेवे, तो स्वानुभूत्या चकासते की प्राप्ति होकर सर्व भावातरच्छिदे रूप बन जावे । चित्स्वभावाय भावाय से विरुद्ध अजीव का आधार माने, तो स्वानुभूत्या चकासते के विरुद्ध को प्राप्ति होकर चारो गतियो मे घूमता हुआ निगोद की प्राप्ति करेगा । प्रश्न ३६ -- स्वानुभूत्या चकासते, चित्स्वभावाय भावाय और सर्वभावान्तरच्छिदे पर ५ नमस्कार लगाकर तथा लाभ-नुकसान समझाओ ? उत्तर-- ( प्रश्न ३५ के अनुसार उत्तर दो ) प्रश्न ३७ - स्वानुभूत्या चकासते; चित्स्वभावाय- भावाय और सर्वभावान्तरच्छिदे पर चार काल लगाकर तथा लाभ-नुकसान समझाइये ? " उत्तर- ( प्रश्न ३५ के अनुसार उत्तर दो) प्रश्न ३८ - स्वानुभूत्या चकासते; चित्स्वभावाय भावाय और सर्वभावान्तरच्छिदे, पर औपशमादि पाँच भाव लगाकर तथा लाभनुकसान समझाइये ? रत्तर- ( प्रश्न ३५ के अनुसार उत्तर दो) प्रश्न ३६ - स्वानुभूत्या चकासते; चित्स्वभावाय भावाय और सर्वभावान्तरच्छिदे पर संयोगादि पॉच बोल लगाकर तथा लाभनुकसान समझाइये ? उत्तर- ( प्रश्न ३५ के अनुसार उत्तर दो ) । प्रश्न ४० - स्वानुभूत्या चकासते; चित्स्वभावाय भावाय और सर्व भावान्तरच्छिदे पर देव-गुरु-धर्म को लगाकर तथा लाभनुकसान समझाइये ?
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy