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उत्तर - निराकुलता; शुद्धात्मपरिणमन, अतीन्द्रिय सुख, सवरनिर्जरा; स्वभाव के साधन आदि कहो, स्वानुभति कहो, एक ही बात है ।
प्रश्न ३२ -- ' सर्व भावान्तरच्छिदे' का भावार्थ क्या है ? उत्तर- भगवान आत्मा सर्व जीव और अजीवो को भूत-भविष्यवर्तमान पर्याय सहित एक समय मे एक साथ जानता है । करने वाला भोगने वाला नही है । ऐसा जाने-माने तो अनन्त संसार का अभाव हो । प्रश्न ३३ - " सर्व भावान्तरच्छिदे से क्या सिद्ध हुआ ?
उत्तर - हे आत्मा । तू एक समय मे लोकालोक को जानने-देखने के स्वभाव वाला है । ऐसी तेरी अपूर्व महिमा है। इससे क्रमबद्ध पर्याय की सिद्धि होती है । क्रमबद्ध को मानते ही चारो गतियो का अभाव रूप पचमगतिका पात्र बन जाता है ।
प्रश्न ३४ -- आत्मा का अनुभव होते हो क्या होता ?
उत्तर - जैसे - एक रत्ती सोने की पहिचान होते ही विश्व के सम्पूर्ण सोने की पहिचान हो जाती है, उसी प्रकार अपनी आत्मा का अनुभव होते ही सिद्ध क्या करते हैं सिद्धदशा क्या है । अरहत क्या करते है, अरहतदशा क्या है | मुनि क्या करते है, मुनिदशा क्या है। श्रावक क्या करते है; श्रावकदशा क्या है । और अनादिसे निगोद से लगा कर द्रव्यलगी मिथ्यादृष्टि क्या करते है, मिथ्यादृष्टिपना क्या है आदि सब बातो का एक समय मे ही ज्ञान हो जाता है । केवली के ज्ञान मे और साधक के ज्ञान मे जानने मे अन्तर नही है । मात्र प्रत्यक्ष - परोक्ष का ही भेद है । इसलिए हे भव्य । तू एक बार अपनी ओर दृष्टि करके देख, फिर क्या होता है । यह किसी से पूछना नही पड़ेगा क्योकि आत्मानुभव का ऐसा ही अलौकिक चमत्कार है ।
प्रश्न ३५ - स्वानुभूत्या चकासते, चित्स्वभावाय भावाम, और सर्व भावान्तरच्छिदे पर 8 पदार्थ लगाकर बताओ और लाभ नुकसान भी बताओ ?