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________________ ( २२ ) लगाकर बताओ और साथ-साथ क्या लाभ - नुकसान रहा । यह भी बताओ ? 1 उत्तर - प्रश्न १८ के अनुसार उत्तर दो । प्रश्न २१ - पाँच प्रकार के नमस्कारों पर संयोगादि पाँच बोल लगाकर बताओ और साथ-साथ क्या लाभ नुकसान रहा। यह भी बताओ ? उत्तर - प्रश्न १८ के अनुसार उत्तर दो । प्रश्न २२ - पाँच प्रकार के नमस्कारो पर देव-गुरु- धर्म लगाकर बताओ और साथ-साथ क्या लाभ नुकसान रहा । यह भी बताओ ? उत्तर - प्रश्न १८ के अनुसार उत्तर दो । प्रश्न २३ - पाँच प्रकार के नमस्कारों पर सुखदायक दुःखदायक लगाकर बताओ और साथ-साथ क्या लाभ - नुकसान रहा । यह बताओ ? भी उत्तर - प्रश्न १८ के अनुसार उत्तर दो । प्रश्न २४ - पाँच प्रकार के नमस्कारो पर हेय-उपादय-ज्ञेय लगाकर बताओ और साथ-साथ क्या लाभ - नुकसान रहा । यह भी बताओ ? उत्तर - प्रश्न १८ के अनुसार उत्तर दो । प्रश्न २५ - पाँच प्रकार के नमस्कारों पर संयोग की पृथक्तादि तीन बोल लगाकर बताओ और साथ-साथ क्या लाभ नुकसान रहा । यह भी बताओ ? उत्तर - प्रश्न १८ के अनुसार उत्तर दो । प्रश्न २६ - "चित्स्वभावाय- भावाय" का क्या भावार्थ है ? उत्तर- (१) 'भावाय' अर्थात् त्रिकाली द्रव्य यह मेरी सत्ता है । पर द्रव्यो की सत्ता से मेरा किसी भी प्रकार का कर्ता-कर्म भोक्ताभोग्य सम्बन्ध नही है । ऐसा अनुभव - ज्ञान होते ही धर्मदशा प्रगट होना यह भावाय को जानने का लाभ है (२) 'चित्स्वभावाय' से मेरी
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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