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उत्तर - 'सार' शब्द का नास्ति से अर्थ द्रव्यकर्म, नोकर्म और भावकर्म से रहित है । द्रव्यकर्म और नोकर्म मे अजीव तत्त्व आ गया । और भावकर्म मे आस्रव बन्ध, पुण्य-पाप आ गये । सार का अर्थ अस्ति से परमसार जीव है । एकदेशसार सवर - निर्जरा हैं । पूर्णसार मोक्ष है । इस प्रकार नौ पदार्थ आ गये ।
प्रश्न १५ - अपनी आत्मा को सार करने से क्या प्राप्त होता है ? उत्तर -- वीतराग - विज्ञानता अर्थात् सम्यग्दर्शन - ज्ञान चारित्र की प्राप्ति होती है ।
प्रश्न १६ - अजीव को सार करने से क्या होता है ?
उत्तर - चारो गतियो मे घूमता हुआ निगोद मे चला जाता है । प्रश्न १७ असार क्या है और सार क्या है ?
उत्तर- नौ प्रकार का पक्ष असार है । एकमात्र अपनी आत्मा ही सार है । उसको सार करने से धर्म की शुरूआत, वृद्धि और पूर्णता होती है ।
प्रश्न १८ - पच प्रकार के नमस्कारो पर नौ पदार्थ लगाकर बताओ और साथ-साथ क्या लाभ - नुकसान रहा। यह भी बताओ ?
उत्तर - शक्तिरूप नमस्कार मे जीवतत्त्व आया । एकदेश भाव नमस्कार मे सवर - निर्जरा तत्त्व आये । द्रव्य नमस्कार मे आस्रव-बन्ध पुण्य-पाप आये । जड नमस्कार मे अजीवतत्त्व आया । पूर्णभाव नमस्कार मे मोक्षतत्त्व आया । अपने जीव का आश्रय ले, तो सवर - निर्जरा की प्राप्ति होकर क्रम से मोक्ष की प्राप्ति हो । अजीव और आस्रव-बन्ध से भला-बुरा माने, तो चारो गतियो मे घूमता हुआ निगोद की प्राप्ति हो ।
प्रश्न १६ - पाँच प्रकार के नमस्कारो पर चार काल लगाकर बताओ और साथ-साथ क्या लाभ नुकसान रहा । यह भी बताओ ? उत्तर - प्रश्न १८ के अनुसार उत्तर दो ।
प्रश्न २० - पाँच प्रकार के नमस्कारो पर औपशमादि पाँच भाव