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(२०) नमस्कार । (३) द्रव्य नमस्कार। (४) जडनमस्कार। (५) पूर्ण भाव नमस्कार।
प्रश्न ११-इन पांच नमस्कारो को समझाइये ?
उत्तर--अनन्त गुणो का अभेद पिण्डरूप ज्ञायक भाव वह शक्तिरूप नमस्कार है। शक्तिरूप नमस्कार का माश्रय लेने से प्रथम एकदेश भाव नमस्कार की प्राप्ति होती है। और अपने शक्तिरूप नमस्कार का पूर्ण आश्रय लेने से पर्यायो मे पूर्ण भान नमस्कार की प्राप्ति होती है। यह ज्ञानियो को ही होता है। ज्ञानियो को अपनी-अपनी भूमिका अनुसार जो वीतराग-सर्वज्ञ आदि के प्रति बहुमान का राग आता है वह द्रव्य नमस्कार है । शरीर की क्रिया द्वारा जो नमस्कार होता है वह जड नमस्कार है। द्रव्य नमस्कार और जड़ नमस्कार का निमित्त नैमित्तिक सम्बन्ध है।
प्रश्न १२-इन पाँच नमस्कारो में हेय, शेय, उपादेय किस-किस प्रकार हैं ?
उत्तर-"शक्तिरूप नमस्कार--आश्रय करने योग्य उपादेय । (२) एक देश भाव नमस्कार-एकदेश प्रकट करने योग्य उपादेय । (३) द्रव्य नमस्कार-हेय । (४) जड नमस्कार --ज्ञय। (५) पूर्ण भाव नमस्कार-पूर्ण प्रकट करने योग्य उपादेय ।
प्रश्न १३-इन पांच नमस्कारो से क्या सिद्ध हआ।
उत्तर-(१) "शक्तिरूप नमस्कार का आश्रय लेने से एकदेश भाव नमस्कार की प्राप्ति होती है। (२) एकदेश भाव नमस्कार की प्राप्ति होने पर द्रव्य नमस्कार पर उपचार का आरोप आता है। तभी निमित्त का निमित्त जड नमस्कार कहा जाता है। (३) परिपूर्ण शक्तिरूप नमस्कार का परिपूर्ण आश्रय लेने पर ही पूर्ण भाव नमस्कार प्राप्त होता है । पर या विकारी भावो के आश्रय से मात्र ससार परिभ्रमण ही रहता है।
प्रश्न १४–'सार' शब्द का अस्ति और नास्ति से अर्थ करके नौ पदार्थ लगाओ?