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________________ ( १६ ) प्रश्न ६ - किसी इष्टदेव का नाम लेकर नमस्कार क्यों नहीं किया ? उत्तर - परमार्थत इष्टदेव का सामान्यस्वरूप सर्व कर्म रहित, सर्वज्ञ, वीतराग शुद्ध आत्मा ही है इसलिए आत्म को ही सारपना घटता है । प्रश्न ७ - शुद्ध जीव के ही सारपना घटता है—यह कहाँ लिखा है ? उत्तर - सार अर्थात् हितकारी, असार अर्थात् अहितकारी । सो हितकारी सुख जानना, अहितकारी दुख जानना । कारण की अजीव पदार्थ पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश, काल के और ससारी जीव के सुख नही, ज्ञान नही और उनका स्वरूप जानने पर जाननहारे जीवको भी सुख नही, ज्ञान भी नही । शुद्ध जीव के सुख है, ज्ञान भी है । उनको जानने पर - अनुभव करने पर - जानने वाले को सुख है, ज्ञान भी है । इसलिए ज्ञानियो को ही सारपना घटता है । [ कलश टीका पहला कलश ] प्रश्न ८ - ज्ञानियों को ही सारपना घटता है ऐसा कहीं छहढाला कहा है ? उत्तर - तीन भुवन मे सार, वीतराग विज्ञानता । शिवस्वरूप शिवकार, नमहुँ त्रियोग सम्हारिके ॥ १॥ आतम को हित है सुख, सों सुख आकुलता बिन कहिये । आकुलता शिव माँहि न ताते, शिवभग लाग्यो चहिए |२| प्रश्न - 'नमः' शब्द का क्या अर्थ है ? उत्तर--नमना, झुकना अर्थात् अपनी ओर लीन होना यह 'नम ' का अर्थ है । प्रश्न १० -- नमस्कार कितने हैं ? उत्तर --पांच है, (१) शक्तिरूप नमस्कार । ( ५ ) एकदेश भाव
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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