________________
( १८ )
प्रथम प्रकरण
समयसार का प्रथम कलश का रहस्य
प्रश्न १-श्री समयसार का पहला कलश क्या है ? उत्तर-नमः समयसाराय स्वानुभूत्या चकासते। .
चित्स्वभावाय भावाय सर्वभावांतरच्छिदे ॥१॥ प्रश्न २-'नमः समयसाराय' का क्या भावार्थ है ?
उत्तर-'समय' अर्थात् मेरी आत्मा-जो द्रव्यकर्म, नोकर्म और भावकर्म से रहित है । उस (आत्मा) की ओर दृष्टि होना यह 'नम समयसाराय' का भावार्थ है।
प्रश्न ३–'समय' शब्द के कितने अर्थ हैं ?
उत्तर-'समय' शब्द के अनेक अर्थ है, (१) आत्मा का नाम समय है। (२) सर्व पदार्थ का नाम समय है। (३) काल का नाम समय है । (४) शास्त्र का नाम समय है। (५) समयमात्र काल का नाम समय है । (६) मत का नाम समय है। [मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ २६७]
प्रश्न ४-'समय' शब्द का अर्थ आपने आत्मा कैसे कर दिया है ?
उत्तर- 'सम्' उपसर्ग है, 'सम्' का अर्थ एक साथ है । अयं गतौ धातु है 'अय्' का अर्थ गमन और ज्ञान भी है इसलिए एक ही साथ जानना और परिणमन करना, यह दोनो क्रियाये जिसमे हो वह समय है, इस अपेक्षा भगवान अमृतचन्द्राचार्य ने समय का अर्थ आत्मा किया है।
प्रश्न ५-'नमः समयसाराय' मे अपनी आत्मा को ही क्यो नमस्कार किया है औरो को क्यो नहीं।
उत्तर-समयसार अर्थात् शुद्धजीव ही परमार्थ से नमस्कार करने योग्य है दूसरा नहीं है।