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त्रिकाली स्वभाव है उसका लक्ष्य नहीं किया है । यदि उसका लक्ष्य करे तो तुरन्त धर्म की प्राप्ति होती है। राग विकार और पर वस्तु फिरने वाली है, अध्र व है और अपना ज्ञायक स्वभाव फिरने वाला नही है, ध्रुव है, वह ही प्राप्त करने योग्य है, अध्र व शरीर-धन-विकारलक्ष्मी आदि प्राप्त करने योग्य नही है। ____ प्रश्न १११-ज्ञानी को बंध क्यो नहीं होता है और अज्ञानी को क्यो होता है ?
उत्तर-जैसे-किसी की आँख पर पट्टी बाँध दो, (१) वह पर पदार्थों को नही देख सकता। (२) पट्टी को भी नही देख सकता है। (३) शरीर को भी नही देख सकता है। यदि जरा पट्टी को दूर करदो, तो वह (१) पर पदार्थों को भी देख सकता है । (२) पट्टी को भी देख सकता है और (३) शरीर को भी देख सकता है, उसी प्रकार अज्ञानी के ऊपर अनादिकाल से एक-एक समय करके मोह राग द्वष रूप मिथ्यादर्शन ज्ञान-चारित्र की पट्टी बंधी हुई है उसी पट्टी के नशे मे (१) न ही स्व को जानता है । (२) न ही पर को जानता है। (३) न ही विकार को जानता है । यदि अपने त्रिकाली स्वभाव के आश्रय से पटी को दूर कर दे, तो (१) स्व को जानता है। (२) पर भी ज्ञात होता है और (३) विकार भी ज्ञात होता है। मिथ्यावृष्टि को जैसा वस्तु स्वरूप है, वैसा दृष्टि मे नही आता है इसलिए वध होता है और ज्ञानी को जैसा वस्तु स्वरूप है वैसा हो ज्ञान मे आता है इसलिए वध नही होता है। श्री समयसार १९वी गाथा मे मिथ्यादृष्टि की पहिचान और ७५ वी गाथा मे ज्ञानी की पहिचान बतलाई
प्रश्न ११२-पर का दोष देखने वाले अज्ञानी के स्वभाव को ज्ञानियो ने 'अनीति' 'हरामजादीपना' आदि शब्दो से क्यों सम्बोधन किया ?
उत्तर-जैसे-कोई पतली सी चादर ओढकर सो रहा हो उस पर