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जीव के भाव के साथ कैसा सम्बन्ध है ? ज्ञय-ज्ञायक सम्बन्ध है कर्ताकर्म सम्बन्ध नही है । तुम एक आत्मा हो और आत्मा मे अनन्त गुण है । ज्ञान गुण मे प्रत्येक समय पर्याय होती है। जब तेरी क्षयोपशम रूप ज्ञान की पर्याय अपनी योग्यता से गाली सम्बन्धी ज्ञान की होती है उस समय गाली मात्र ज्ञान का ज्ञय है क्योकि जब तेरे ज्ञान का उघाड जिस प्रकार का हो, उस समय ज्ञय भी उसके अनुकूल ही होता है। सामने गाली आई-तो ज्ञान बढा। पहले गाली सम्बन्धी ज्ञान नही था। अब गालो का ज्ञान हुआ। हमे गुरु ज्ञान देवे, उसका उपकार मानना चाहिये या उस पर गुस्सा करना चाहिए।
(५। उसने मुझे गालियां दी-विचारियेगा | अज्ञानी कहता है मुझे गाली नही चाहिये अर्थात् मुझे उस सम्बन्धी अपनी ज्ञान की पर्याय नही चाहिये । ज्ञान पर्याय आती है ज्ञान गुण से और ज्ञान गुण है आत्मा का । अर्थात मुझे आत्मा नही चाहिए। ऐसी मान्यता वाले को शास्त्रो मे आत्मघाती महापापी कहा है ।
आत्मघाती, महापापी, मूढ कहां पर लिखा है ? उत्तरपुद्गल दरव बहुभांति, निन्दा-स्तुति-वचन रूप परिणमे । सुनकर उन्हे मुझको कहा गिन रोष तोष जु जीव करे । पुद्गल दरव शब्दत्व परिणत, उसका गुण जो अन्य है। तो नहीं कहा, कुछ भी तुझे, हे अबुध | रोष तूं क्यो करे । यह जानकर भी, मूढ जीव पावै नहीं, उपशम अरे । शिव वृद्धि को पाया नहीं, वो पर ग्रहण करना चहे।
प्रश्न १०६-तीन प्रकार के ईश्वर कौन-कौन से है। उनके जानने से क्या लाभ है ?
उत्तर-(१) जडेश्वर (२) विभावेश्वर, (३) स्वभावेश्वर ।
(१) जडेश्वर-प्रत्येक द्रव्य गुणो का समूह है । पुद्गल द्रव्य वह भी गुणो का समूह है। भाषा, मन, वाणी, कर्म आदि परिणमन पुद्गल का स्वय स्वतः कार्य है । प्रत्येक पुद्गल जड़ेश्वर है । जडेश्वर