________________
( २६८ ' )
कितनी अच्छी लगती है । इसलिये गाली सुनने से किसी को भी दुखसुख नही होता, मात्र अपने राग-द्वेष के कारण ही दु:ख-सुख होता है ऐसा माने-जाने तो क्रोध नही आवेगा ।
(२) उस जीव ने मुझे गालियां दी । विचारियेगा | क्या कोई जीव शब्द का परिणमन करा सकता है ? आप कहेगे, नही । गाली देने वाले ने अपने ज्ञाता - दृष्टा स्वभाव को भूलकर मात्र गाली देने का भाव किया। वह द्वेष भाव है । वह द्वेष भाव से स्वय दुखी है । क्या दुखी को दुःखी करना भले आदमी का कार्य है ? नही । क्योकि दुखी जीव तो दया का पात्र है ।
(३) उसने मुझे गालियाँ दी । विचारियेगा | क्या उसने तुम्हारे जीव को देखा है ? आप कहेगे, नही । उसने नाम - शरीर को उद्देश्य करके गाली देने का द्वेष भाव किया । विचारो, नाम - शरीर तो तुम नही । नाम और शरीर तुम्हारा न होने पर भी उसको (शरीर, नाम को) अपना मानना भूल है । अज्ञानी जीव शरीर और नाम को अपना मान बैठा है इसलिए दुखी होता है । ज्ञानो जानता है कि मैं आत्मा हू, शरीर और नाम में नही हू । ऐसा जाने-माने तो क्रोध नही आवेगा ।
एक साधु अपने चेलो के साथ चला जा रहा था । रास्ते मे एक आदमी चलते-चलते साधु महाराज को गालियाँ दे रहा था। चेलो को बहुत गुस्सा आया। साधु ने चेलो को चुप रहने का आदेश दिया । चलते-चलते साधु की कुटिया आ गयी । साधु चेलो सहित अन्दर चला गया । गाली देने वाला देखता ही रहा। बाद मे साधु ने चेलो को बुलाया - देखो कोई हमको १० रुपया देता है, हम ना ले तो किस पर रहे ? उसी पर रहे; उसी प्रकार उसने गालियाँ दी, हमने नही ली । वह उसी पर रह गयी । ऐसा जाने तो शान्ति आ जावेगी ।
(४) उसने मुझे गालियां दी - जब तेरे ज्ञान का उघाड गाली सुनने का हो तो सामने गाली ही होगी। विचारियेगा । गाली का