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(२६७ ) 'भिजवा दिया। (५) अग्नि-परीक्षा पर वही रामचन्द्र सीता से कहते हैं, घर चलो, तुम्हे पटरानी बनाकर रखूगा। सीता अर्जिका बन जाती है। (६) सीता का जीव मरकर १६३ स्वर्ग मे देव हो जाता है । रामचन्द्र जिनेश्वरी दीक्षा ग्रहण करते हैं; सीता का जीव स्वर्ग से आकर सीता का रूप बनाकर रामचन्द्र जी को डिगाने का प्रयत्न करती है। अरे भाई, देखो परिणामो की विचित्रता ! ऐसा जानकर अपने परिणाम बिगडने का भय रखना और उनके सुधारने का उपाय करना । जीवन के परिणामनि की यह, अति विचित्रता देखहु ज्ञानी।
प्रश्न १०७-श्रुतज्ञान मे ही नय पड़ते हैं और ज्ञान की पर्यायों मे नय क्यो नहीं पड़ते हैं ?
उत्तर-श्रुतज्ञान विचारक ज्ञान है । श्रुतज्ञान मे त्रिकाली स्वरूप क्या है, वर्तमान स्वरूप क्या है, दो बातें चलती हैं इसलिए श्रुतज्ञान मे नय पडते हैं । मतिज्ञान सीधा जानता है। अवधि और मन पर्यय ज्ञान का विषय पर है और विकल प्रत्यक्ष है । केवलज्ञान सकल प्रत्यक्ष है । इसलिये इन चार ज्ञानो मे नय नही पडते है । मात्र भाव 'श्रुतज्ञान मे ही नय पडते हैं ।
अपना है। अरेप बनाकर ग्रहण करते
गाली क्या है ? प्रश्न १०८-कोई हमें गाली दे, क्या हम उसे सुनते ही रहे, हम उसे थप्पड़ न मारे ?
उत्तर-वस्तु स्वरूप समझे, तो शान्ति प्राप्त होगी। - (१) उसने मुझे गालियां दी। जिनको तू गाली कहता है वह गाली ही नही है। विचारियेगा | गाली दी~-इसमे पाँच वोल हैं। (अ) गाली क्या है ? अ से लेकर ह तक स्वर-व्यजन का परिणमन है इसका कर्ता भाषा वर्गणा है, जीव नही। इसलिए मुझे गाली दी, यह बात झूठ है। (आ) यदि गाली सुनते ही गुस्सा आवे, तो सब जगह एक सा सिद्धान्त होना चाहिये परन्तु ससुराल,मे साली गाली देवे तो