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(२) एक धोवी उडद की दाल, लहसन आदि खाकर निर्मल जल से भरे हुए तालाव मे कपडे धोने लगा। उसे प्यास लगी तो विचारता है । अभी तो दो ही वस्त्र घुले हे, थोडे और घुलने पर पानी पीऊँगा । फिर प्यास जोर से लगी 'ये धोने के बाद, ये धोने के वाद, जल पीऊँगा । इस प्रकार सकल्प विकल्प करता रहा और मगज मे गरमी चढ गई, इससे वेसुध होकर जल मे गिर गया और वही मर गया ।
उसी प्रकार निगोद से लगाकर द्रव्यलिंगी मिथ्यादृष्टि मुनि तक सव ससारी जीव सोचते है कि यह करने के बाद, गुरु के उपदेश द्वारा सम्यग्ज्ञान रूपी जल पीकर सुखी होऊँगा । यह करने के बाद, यह करने के बाद, ऐसा करता करता मरकर, पता नही कहाँ चला जाता है । इसलिए हे आत्मा । तुरन्त चेत, देर मत कर । इसलिए पात्र जीव को एक समय की भी देरी न करके अपना कल्याण तुरन्त कर ही लेना चाहिए ।
यह जीव इसी प्रकार मनुष्य जन्म पाकर, विषयो के लुभाव मे पागल होकर, चारो गतियो मे घूमकर, निगोद मे चला जाता है । इसलिए हे भव्य | अब सर्व प्रकार अवसर आया है, ऐसा अवसर मिलना कठिन है | तू अपने भगवान का आश्रय लेकर धर्म की प्राप्ति कर, सावधान हो, देर मत कर ।
प्रश्न १०६ - परिणामों की विचित्रता कैसी है ?
उत्तर - देखो, परिणामो की विचित्रता । ( १ ) कोई जीव तो ११ वें गुणस्थान मे ओपशमिक चारित्र प्राप्त करके, पुन मिथ्यादृष्टि होकर किचित् न्यून अर्द्ध पुद्गल परावर्तन काल पर्यन्त ससार में परिभ्रमण करता है । (२) कोई जीव नित्य निगोद से निकलकर मनुष्य होकर मिथ्यात्व छूटने के पश्चात् अन्तर्मुहूर्त में केवलज्ञान प्राप्त करता है । ( ३ ) सीता को रावण हरण करके ले गया । रामचन्द्र जी वृक्षो से पूछते हैं, मेरी सीता तुमने देखी है । (४) वही सीता घर आने पर लोगों के कहने से रावण के पास से आई हुई, सीता को बनवास में