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( २६४ ) अपनी आत्मा मे लीनता (३) हो जावेगी कषाय भावो की हीनता (४) मिट जावेगी ससार परिभ्रमण की एकता। ।
प्रश्न १०१-भूत क्या है और अभूत क्या है ?
उत्तर-जिसमे जो हो उसे उसका कहना वह भूत है और जो जिसमे ना हो उसे उसका कहना वह अभूत है।
प्रश्न १०२-कुन्द-कुन्द भगवान क्या कहते हैं ? उत्तर-मैं ऐसा नहीं कहता, परन्तु सर्वज्ञ भगवान ऐसा कहते है। प्रश्न १०३--सर्वज्ञ भगवान क्या कहते हैं ?
उत्तर-जैसा वस्तु का स्वरूप है वैसा हमारे ज्ञान मे आया हैइसलिए हम कहते हैं।
प्रश्न १०४-आत्मा मात्र शुद्ध या अशुद्ध भाव ही कर सकता है तो फिर हम शरीर की क्रिया, दान देना, पूजा आदि की क्रिया करें या नही?
उत्तर-जैसे बढवाण मे एक नदी बहती है। उसमे बहुत सूक्ष्म बाल होता है। अब हमे बालू से तेल निकालना है, उस तेल निकालने की मशीन का आर्डर अमेरिका को दे या रूस को दे । अरे भाई । जब बालू से तेल निकलता ही नही, तब आर्डर देने की बात कहाँ से आई ? उसी प्रकार जब आत्मा शरीर की क्रिया, रुपया-पैसा देने की क्रिया करता ही नही है तब हम करें या नहीं यह प्रश्न ही झूठा है। जीव तो मात्र भाव ही कर सकता है। मिथ्या दृष्टि की मर्यादा विकारी भावो तक है । ज्ञानी की मर्यादा शुभ भावो तक है। परन्तु द्रव्यकर्म-नोकर्म की क्रिया तो ज्ञानी-अज्ञानी कर सकता ही नही है, तब मैं करूं या न करूं यह प्रश्न मिथ्यात्व से भरा हुआ है। ,
प्रश्न १०५-जो यह कहता है कि अभी तो हम बच्चे हैं जवान होकर गृहस्थी के मजे ले-लें, घर और बाल बच्चो का इन्तजाम कर दें तम बाद में धर्म करूंगा। तो क्या यह बात ठीक है ? '
उत्तर-अरे भाई ! क्या तुझे निश्चिय है कि मैं अगले समय