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________________ ( २६० ) काल द्रव्य है--इनसे दृष्टि उठावो, (२) चीनी मे मैल की तरह हिसा, झठ आदि पापभाव है और दया, दान, पूजा, अणुव्रत, महावत का भाव पुण्यभाव है--इनसे भी दृष्टि उठावो, (३) जैसे--चीनी से मिठास अलग नही हो सकता, उसी प्रकार अनन्त गुणो का अभेद पिण्ड जो अपना आत्मा है उस पर दृष्टि दे तो तुरन्त कल्याण होता है । प्रश्न ६६-मनुण्य भव के लिए ज्ञानी देवता भी तरसते हैं यह वात कैसे है ? उत्तर-एक राजा था । उसे अपनी दौलत का बहुत बडा अभिमान था। वह चाहता था कि मैं सबको अपनी सम्पत्ति दिखलाऊँ लेकिन मीका नहीं मिलता था। एक बार भगवान का समोशरण आया। उसने समोशरण मे जाने के लिए रणभेरी वजवादी। उसने सोचा-अव अपनी सम्पत्ति दिखलाने का अच्छा मौका है। उसने अपनी तमाम दौलत, फौज, हाथी आदि सजाकर लोगो को दिखाकर समोशरण मे जाने का विचार किया। उसके विचार को इन्द्र ने जान लिया। इन्द्र ने राजा का मान गलाने के लिये वडे-बड़े हाथी और हाथी की सुंड पर अप्सरा नृत्य करती हुई, वडाभारी वैभव निकलवाया, इन्द्र के वैभव को देख कर राजा का मान गल गया। इन्द्र और राजा भगवान के समोशरण मे पहँचे और राजा ने इन्द्र को ललकारा, हे इन्द्र देव । तुमने दौलत सम्बन्धी मेरे मान को नीचा दिखाया, अब मैं भगवती जिनेश्वरी दीक्षा लेता हू तुम्हारे मे शक्ति है तो आजावो । तब इन्द्र कहता है तुम बडे भाग्यशाली हो, जो भगवती जिनदीक्षा ले रहे हो। मेरे इन्द्रपद से भी मनुष्यभव विशेष दुर्लभ है, क्योकि मैं मनुष्यभव में ही दीक्षा अगीकार करके मोक्ष प्राप्त कर सकता हूँ। भाई विचारो । जो जीव मनुष्यभव पा करके पांचो इन्द्रियो के विषयो मे ही अपना जीवन खो देते हैं उन्हे सौ-सौ बार धिक्कार है। वास्तव मे बालकपन सम्यग्दर्शन है। जवानी मुनिपना है। बुढापा
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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