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________________ (३) अखण्ड ज्ञायक स्वभाव की सामर्थ्यता का भान हो तो सम्यग्दर्श नादि की प्राप्ति होकर मोक्ष का पथिक बने । जो अपना कल्याण चाहता है । वह सयोग जो पृथक् है उससे अपना ध्यान हटावे । शुभाशुभ विकारी भाव विपरीत रूप है इनसे भी जीव का कल्याण नही होता है । एकमात्र स्वभाव की सामर्थ्यता की ओर दृष्टि करे, तो शान्ति प्राप्त हो । प्रश्न ६४ - सर्वज्ञ भगवान के केवलज्ञान का विषय क्या है ? उत्तर- "सर्वद्रव्य पर्यायेषु केवलस्य ।" अर्थ - केवलज्ञान का विषय सर्वद्रव्य ( गुणो सहित ) और उनकी सर्व पर्याये है- अर्थात् केवलज्ञान एक साथ सर्व पदार्थों को और उनके सर्व गुणो तथा पर्यायो को जानता है । [ मोक्ष शास्त्र अ० १ सूत्र २६ ] प्रश्न ६५ - हमारे मे थोड़ी बुद्धि है । हमे ऐसी बात बताओजिससे हमारा कल्याण हो जावे ? - 1 उत्तर--देखो भाई | भगवान महावीर के निर्वाणोत्सव पर हम सब लड्डू चढाते हैं । तब आप एक चतुर वाई के पास निर्वाणोत्सव के लड्डू बनवाने गये, तो बाई ने चूल्हे पर कढाई रक्खी और पानी गेरा । आपसे कहा लाओ चीनी । तब आपने डिब्बा जिसमे चीनी थी, उसको दिया । उसने कढाई मे चीनी गेरकर डिब्बा तुम्हे पकडा दिया। थोडी देर मे उसमे उफान आया तो बाई ने आपसे दूध माँगा । तो आपने दूध का लोटा पकडा दिया, बाई ने दूध गेरकर लोटा वापस कर दिया। चीनी मे मैल आया तो बाई ने उसे उतारकर फेक दिया । तव आपने कहा, बाई जी ! तुम तो बहुत हुश्यार हो, तुमने चीनी से मैल अलग कर दिया। अब जरा मिठास को अलग कर दो । बोली, मिठास अलग नही हो सकता, उसी प्रकार जिसमे थोडी वृद्धि है और अपना कल्याण करना चाहता है तो (१) डिब्बा, की तरह अपनी आत्मा के अलावा अनन्त आत्माये, अनन्तानन्त पुद्गल धर्म-अधर्म-आकाश एक एक ओर लोक प्रमाण असख्यात
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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