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जो जादि अरहतं दव्वत गुणत्तपज्जयतह । सो जाणदि अप्पाणं मोहो खलु जादि तस्य लयं ॥ ८० ॥ जिस जोव ने अपनी वर्तमान पर्याय को अपने त्रिकाली भगवान की ओर सन्मुख किया, उस समय उसका मोह का अभाव हो जाता है तब अरहत भगवान को जाना और माना ।
प्रश्न ६१ - उत्साह, आदर, भावना और फल से क्या तात्पर्य है ? उत्तर - (१) जिसकी रुचि - उसकी सावधानी । ( २ ) जिसकी सावधानी - उसकी मुख्यता । (३) जिसकी मुख्यता - उसकी महिमा । ( ४ ) जिसकी महिमा - उसका आदर । (५) जिसका आदर - उसका उत्साह । (६) जिसका उत्साह - उसकी भावना । ( ७ ) जिसकी भावना उसका फल | ( ८ ) जिसका फल - उसका जीवन मे टोटल हर समय आता है । इससे यह पता लगता है कि जीव कहाँ खडा है और कहाँ सावधान है ।
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प्रश्न १२ - पुद्गल कर्म की कौनसी अवस्था रागादि में निमित्त नहीं है और कौनसी अवस्था मे निमित्त है ?
उत्तर- (१) कर्म सत्ता मे पडा हो वह रागादि मे निमित्त नहीं है । (२) कर्म की प्रकृति भी रागादि मे निमित्त नही है । (३) कर्म के प्रदेश भी रागादि मे निमित्त नही हैं । ( ४ ) कर्म की स्थिति भी रागादि मे निमित्त नही है । ( ५ ) एक मात्र पुराने कर्म का उदय ( अनुभाग ) रागादि मे निमित्त पडता है ।
प्रश्न ६३ - संयोगकी पृथकता, विभावकी विपरीतता और स्वभाव की सामर्थ्यता, पर से तीन बोल कौन-कौन से निकलते हैं और इनको जानने से क्या लाभ हैं ?
उत्तर- ( १ ) अनादि काल से आज तक अनन्त शरीर धारण किये उसमें से एक भी रजकण अपना नही हुआ । (२) अनादि काल से आज तक असख्यात लोक प्रमाण विभाव भाव किया। परन्तु " वह का वह रहता नही ।" जो अपने साथ न रहे, वह अपना है ही नही ।