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________________ ( २५६ ) क्योकि जो तीन लोक और तीन काल को जाने, वही सर्वज्ञ है । इसलिए सर्वज्ञ का निषेध योग्य नही है । प्रश्न ८६ - देवागम स्रोत मे समन्तभद्र स्वामी और महावीर स्वामी की क्या वार्ता है ? उत्तर- ( १ ) भगवान महावीर ने समन्तभद्र से पूछा कि तुम मुझे भगवान इसलिए मानते हो, कि मुझे देवता, चक्रवर्ती आदि नमरकार करते हैं ? समन्तभद्र ने कहा- नही भगवान । (२) भगवान ने फिर पूछा- चामर, छत्र आदि विभूति हैं । आकाश में मेरा गमन होता है। इसलिए तुम मुझे भगवान मानते हो ? समन्तभद्र ने कहा- नही भगवान । इन कारणो से आप हमारे लिए महान नही है । ऐसी बाते तो मायावी इन्द्रजाली आदि में भी पाई जाती हैं । (३) भगवान ने कहा, तब फिर तुम मुझे किसलिए भगवान मानते हो ? समन्तभद्र ने कहा- मेरे मे पहले बहुत दोप थे और ज्ञान का उघाड भी बहुत कम था और अव दोष बहुत कम हो गये हैं और ज्ञान भी बढ गया है । जब मेरा दोप कम हुआ, तो कोई दोष रहित भी होना चाहिए और मेरा ज्ञान वढा, तो कोई पूर्ण ज्ञानवाला भी होना चाहिये । सो हे प्रभो । मैं आपको दोप रहित वीतरागरूप और पूर्ण केवलज्ञानी पाता हूँ । इसलिए मैं आपको नमस्कार करता हूँ और आपकी वाणी पूर्वा पर विरोध रहित ही होती है । कहा है - देवागम, नभोयान, चामरादि विभूतयः । माया विष्वपि दृश्यन्ते, नातस्त्वयति नो महान ॥२॥
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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