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( २५५ ) फिरने वाले है जो इनका विश्वास करता है, धोखा खाता है और जो न फिरने वाला अपना ध्रु वधाम है, उसका आश्रय ले तो धर्म की प्राप्ति होती है।
(६) क्षायिक, क्षयोपशम, औदयिक, औपशमिकभाव अध्र व है। इनके आश्रय से धर्म की प्राप्ति नही होती है और जो अपना परम पारिणामिक त्रिकाली ध्र वधाम है, उसका आश्रय ले तो धर्म की प्राप्ति होती है ।
(७) हे आत्मा' (१) परवस्तुओ से (२) विकारी भावो से, (३) अपूर्ण पूर्ण शुद्ध पर्यायो से, जो कि सब अध्रुव हैं, इनसे दृष्टि उठा
और जो अपना ध्र वधाम ज्ञायक भगवान है। उसका आश्रय ले, तो सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होकर श्रावकपना, मुनिपना, श्रेणीपना, अरहतपना-सिद्धपना की प्राप्ति हो। इसलिए अपने ध्र वधाम की धुनरूपी ध्यान से ही धर्म की प्राप्ति, वृद्धि और पूर्णता होती है ।
प्रश्न ८७-सर्वज्ञ है, इसकी सिद्धि किस प्रकार हो ?
उत्तर-पचास्तिकाय जयसेनाचार्य गा० २६ मे तथा वृहत द्रव्य सग्रह गा० ५० की टीका मे सर्वज्ञ की सिद्धि की है।
प्रश्न ८८-कोई सर्वज्ञ का निषेध करने वाला कहता है कि सर्वज्ञ है ही नहीं, क्योकि देखने में नहीं आते, उसे शास्त्र मे किस प्रकार समझाया है ?
उत्तर-हे भाई | यदि तुम कहते हो 'सर्वज्ञ नही है' तो हम पूछते है कि सर्वज्ञ कहाँ नही है ? इस क्षेत्र मे और इस काल मे नही है अथवा तीनो काल मे और तीनो लोको मे नही है। [अ] यदि तुम यह कहते हो कि 'इस क्षेत्र मे और इस काल मे सर्वज्ञ नही है, तो हम भी ऐसा ही मानते है। [आ] यदि तुम यह कहते हो कि 'तीनो काल और तीनो लोको मे सर्वज्ञ नही है' तो हम तुमसे पूछते हैं कि यह तुमने कैसे जाना ? यदि तीनो लोक को और तीनो काल को सर्वज्ञ के बिना तुमने देख-जान लिया तो तुम्ही सर्वज्ञ हो गए।