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________________ ( २५४ ) और पर द्रव्य, विकारी, अविकारी पर्यायो का आश्रय छोड। (३) जैसे- एक मजबूत खूटे से बड़ी मोटी भैस वधी है। भैस जोर मारती है। लोग कहते हैं भैस जोरावर है परन्तु जोर है खूटे का, जो हिलता ही नहीं, उसी प्रकार अज्ञानी लोग बाहरी क्रिया का, शुभभावो का जोर देखते हैं लेकिन जोर है अपने त्रिकाली ध्र वधाम का । इसलिए अपने ध्रवधाम की धुनरूपी ध्यान से धर्म प्रगट करना चाहिए। (४) एक बार छोटी उम्र में पूज्य गुरुदेव ध्र व का नाटक देखने गये । नाटक में दिखाया गया कि ध्रुव बच्चा है वह अपने बाप की गोद मे बैठने जा रहा है। उसी समय उसकी दूसरी माँ ने टोका, तू तू उसका पुत्र है गोद मे कैसे जाता है ? वह यह देखकर जगल मे चला गया और ऐसा ध्यान लगाया कि आँख उठाकर ऊपर को देखता ही नहीं था। तब स्वर्ग से दो अप्सरा उसे डिगाने आई। उन्होने वडा हाव भाव प्रकट किया, परन्तु ध्रुव ने उनकी तरफ आंख उठाकर देखा ही नही । तब उन अप्सराओ ने कहा-ध्र व तुम इतनी छोटी उम्र में क्यो ध्यान करते हो? तुम अभी हमारे साथ भोग करोआनन्द लो । बाद मे दीक्षा ले लेना, तब भी ध्रव ने अपनी नजर ॐत्री ना की । अप्सराओ ने कहा, हे ध्रुव | जरा एक बार हमारी ओर नजर उठाकर के तो देख लो । तव ध्रुव ने आंख खोलकर उनसे कहा हे माता| यदि मुझे जन्म लेना पडे, तो मैं तेरी कोख मे उत्पन्न होऊँगा तव वह अप्सराएँ निराश चली गई; उसी प्रकार यह जीव अनादि से एक-एक समय करके पर की ओर देखकर पागल हो रहा है । यदि एक बार अपने ध्र वधाम की ओर दृष्टि करे, तो तुरन्त धर्म की प्राप्ति होती है। (५) जैसे-- एक आदमी ने एक लाख रुपया दान देने को कहा और बाद मे मुकर गया । तो जो मुकर जाता है उसका कोई विश्वास नही करता, उसी प्रकार ससार की सब पर वस्तु और शुभभाव
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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