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( २५२ ) अघाती कर्म और औदारिक शरीर का अभाव नही कर सकते है और उनका भक्त कहे, कि हम कर सकते हैं, कितना आश्चर्य है । (५) सिद्ध भगवान सबको जानते हैं, किसी का कुछ भी नही कर सकते हैं। ऐसा जानकर अपना आश्रय ले, तो धर्म की प्राप्ति सभव है।
प्रश्न ८३-सठ शलाका पुरुष सम्यग्दृष्टि होते हैं या मिथ्यादृष्टि ?
उत्तर- सठ शालाका बन्ध सम्यग्दर्शन होने के बाद ही होता है। मिथ्यादृष्टि को इनमे से एक का भी वन्ध नही होता है परन्तु :
(१) २४ तीर्थंकर तो सम्यग्दृष्टि ही होते हैं और उसी भव से मोक्ष जाते है । (२) चक्रवर्ती कोई मोक्ष जाता है, कोई स्वर्ग जाता है और कोई सम्यक्त्व का अभाव करके सातवे नरक भी जाता हैं । (३) नव बलदेव सब सम्यग्दृष्टि ही रहते है। कोई मोक्ष और कोई स्वर्ग जाता है। (४) नारायण और प्रेतिनारायण का सम्यक्त्व नष्ट हो जाता है और नरक जाते है।
प्रश्न ८४-पर्याप्ति कितनी हैं और उससे क्या सिद्ध होता है ?
उत्तर-पर्याप्ति छह होती है-(१) आहार, (२) शरीर, (३) इन्द्रिय, (४) श्वासोच्छवास, (५) भाषा, (६) मन ।। __जैसे-सज्ञी पचेन्द्रिय जीव जब-जब जहाँ पर उत्पन्न होता है। वहाँ पर इन सब पर्याप्तियो की शुरुआत एक साथ होती है। लेकिन पूर्णता क्रम से होती है। उसी प्रकार सम्यग्दर्शन होने पर सर्व गुणो मे अशरूप से शुद्धता आ जाती है, परन्तु पूर्णता क्रम से होती है । सम्यग्दर्शन चौथे गुणस्थान मे पूर्ण हो जाता है । चरित्र १२वें गुणस्थान मे तथा ज्ञान, दर्शन, वीर्य की पूर्णता १३वे गुणस्थान मे और योग की पूर्णता १४वे गुणस्थान मे होती है।
प्रश्न ८५-कोई कहे कि सम्यग्दर्शन होते ही पूर्णता होनी चाहिए। नहीं तो हम सम्यग्दर्शन होना मानते ही नहीं। क्या उनका कहना ठीक है?