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________________ ( २५१ ) नहीं कर सकता, (२) रोटी खाने का कार्य पुद्गल का ही है, आत्मा का नहीं, (३) कर्मों के उपशमादि कार्माणवर्गणा का ही कार्य है जीव से उसका सम्बन्ध नहीं है। लेकिन हमको तो जैसा आप कहते हैं उल्टा ही दिखता है इसका क्या कारण? उत्तर-(१) जैसे-किसी की आँख मे पीलिया रोग हो गया हो तो उसे सब चीजें पीली ही दीखती है, उसी प्रकार अज्ञानियो को सव बातें शास्त्र से विरुद्ध ही दिखाई देती है। (२) जैसे-आप रेल मे जाते है । वहाँ से बाहर की तरफ देखे, तब पेड चलते हुए दीखते है। क्या पेड चलते हैं ? आप कहेगे नही, उसी प्रकार अज्ञानी को सब कार्य शरीरादि के हम करते है, ऐसा दीखता है, लेकिन जैसे आपके ज्ञान मे आता हैं कि पेड़ चलते नही हैं, वैसे ही जिनेन्द्र भगवान की आज्ञा मानकर अपने स्वभाव का आश्रय ले, तो सही बात ध्यान मे आवें । (३) "वछरे के अण्डे के समान आत्मा ने किया, ऐसा अज्ञानी मानता है। अज्ञानी जीव कहता है कि आत्मा पर द्रव्य के कार्य को करता देखा जाता है ना? अरे भाई जब आत्मा पर द्रव्य का कुछ कर ही नहीं सकता। तो तूने देखा कहाँ से ? खोटी दृष्टि से देखा है कि आत्मा ने यह जडकी क्रिया की है । यह देखो । हाथ मे लकडी है। अब यह ऊँची हो गई, इसमे आत्मा ने क्या किया ? आत्मा ने यह जाना तो सही कि लकडी पहले नीचे थी और अब ऊपर हो गई है। परन्तु आत्मा लकडी को ऊचा करने में समर्थ नहीं है । अज्ञानी मानता है कि मैंने लकडी ऊँची की है यह विपरीत मान्यता है । इस लिए याद रक्खो - (क) एक आत्मा दूसरी आत्मा का कुछ नहीं कर सकता है। (ख) एक आत्मा जड का कुछ नही कर सकता है । (ग) एक पुद्गल दूसरे पुद्गल का कुछ नहीं कर सकता है। (घ) एक पुद्गल भी आत्मा का कुछ नही कर सकता है। ऐसा मानना सम्यग्ज्ञान है, 'इससे उल्टा मानना महान पाप मिथ्यात्व है । (४) देखो । अरहत भगवान को अनन्त चतुष्टय की प्राप्ति हुई है । वह उसी समय चार
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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