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उत्तर-अपने स्वरूप की रमणता से हटकर श्रदा सहित प्रमाद के वश होना उसे छेद कहते हैं। उस प्रमाद को हटाकर अपने स्वरूप मे आना उसे छेदोरस्थापना कहते हैं । जैसे-सातवा गुणस्थान वाले मुनि जव छठे गुणस्थान में आते है, उन्हे २८ मूलगुण पालने का भाव आता है, उसका नाम भी छेद है और उस वृत्ति को तोडकर सातवे गुणस्थान मे आना, छेदोपस्थापना है।
प्रश्न ५२-हिंसा और महान हिसा क्या हैं ?
उत्तर-(१) रागादि की उत्पत्ति होना हिंसा है। (२) रागादि भावो मे धर्म मानना महान हिसा है।
प्रश्न ५३--अहिंसा और अहिंसा की सच्ची समझ क्या है?
उत्तर-(१) रागादिक की अनुत्पत्ति वह अहिंसा है । (२) रागादिक मे धर्म नही मानना, वह है अहिंसा की सच्ची समझ ।
प्रश्न ५४-संसार का अभाव और मोक्ष की प्राप्ति कैसे हो?
उत्तर-परिवर्तनशील ससार मे अपरिवर्तनशील अपने ज्ञायक स्वभाव का आश्रय ले तो अपरिवर्तनशील मोक्ष की प्राप्ति हो।
प्रश्न ५५-सामान्य के आश्रय से क्या होता है और विशेष के आश्रय से क्या होता है ?
उत्तर-अपने सामान्य स्वभाव का आश्रय लेने से अपने विशेष मे सवर-निर्जरा और मोक्ष की प्राप्ति होती है और अपने विशेष का आश्रय ले तो अपने विशेप मे आस्रव-बन्ध की वृद्धि होकर निगोद की प्राप्ति होती है।
प्रश्न ५६–मुझे-दुःख मिटाकर-सुख प्राप्त करना है। सात तत्त्व • लगाकर बताओ?
उत्तर-जीव-अस्रव-वन्ध-सवर-निर्जरा मोक्ष । प्रश्न ५७-"समझा तो समाया" से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-जो अपने मे समा जाता है वह समझा है और समझने माले को बाहरो प्रसिद्धि की आवश्यकता नही होती है।
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