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________________ भूत-भविष्य वर्तमान के राग का त्याग नही कर सकता है। (२) अज्ञानी कहता है जब राग आवेगा, तब मैं उसका अभाव कर दूंगा। किन्तु वह राग छदमस्थ के ज्ञान मे असख्यात समय के बाद मे आता है तब जो राग वह छोडना चाहता है वह तो असख्यबार स्वय बदल गया होगा अर्थात उस राग का तो व्यय हो गया होगा, तो किसको छोडेगा ? (३) अज्ञानी कहता है कि जब राग की पर्याय उत्पन्न होगी मै उसका अभाव कर दूंगा। किन्तु जब एक समय की पर्याय पकड़ मे आवेगी तब उसे केवलज्ञान होना चाहिए और केवलज्ञान होने से पहले १२वे गुणस्थान मे रागादि का सर्वथा अभाव हो जाता है। अत राग का त्याग करना नहीं पड़ता है। प्रश्न ३६-शास्त्रो मे लिखा है कि रागादिक का त्याग करो तो क्या यह असत्य लिखा है ? उत्तर-नही, असत्य नही लिखा है। वह निमित्त की अपेक्षा कथन किया है। जैसे-किसी को बुखार आया । डाक्टर ने दवाई दी तो वह उतर गया। वास्तव मे बुखार आया ही नही उसको बखार उतर गया, ऐसा बोलने मे आता है, उसी प्रकार जीव ने अपने त्रिकाली स्वभाव का आश्रय लिया, तो राग-द्वेष उत्पन्न ही नहीं हुआ तो राग द्वष को दूर किया, ऐसा व्यवहार से कथन किया जाता है। क्योकि स्वभाव का आश्रय लेना, अशुद्ध पर्याय का व्यय और शुद्ध पर्याय की उत्पत्ति का एक ही समय है। प्रश्न ४०-साकार, निराकार का किस-किस अर्थ मे प्रयोग होती है ? उत्तर-पहली प्रकार से (१) दर्शनोपयोग को निराकार उपयोग कहते हैं, क्योकि दर्शन पदार्थों को अभेदरूप से देखता है। २) ज्ञानोपयोग को साकार उपयोग कहते हैं, क्योकि ज्ञान पदार्थों को भिन्नभिन्न जानता है। दूसरी तरह से (१) इन्द्रिय गम्य ना होने से आत्मा को निराकार कहते हैं । (२) प्रदेशत्वगुण के कारण आत्मा
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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