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________________ ( २३७ ) देखो भाई ! कोई वकील का कार्य करता है तो उसमे दूसरा कोई आदमी दखल नही देता है । कोई डाक्टर डाक्टरी करता है, तो उसमे अन्य कोई दखल नहीं देता है। कहने का तात्पर्य यह है कि जो जिस व्यापार को करता है-जानता है, उसमे दूसरे व्यापार वाला दखल नही देता है। लेकिन लोकोत्तर मार्ग में भी हम ऐसा करे, कि जो आगम का अनुभवी ज्ञाता हो, उससे प्रथम धर्म श्रवण करे, निर्णय करे तो हम किसी भी शास्त्र को पढे, तो दृष्टि ठीक होने से वीतरागता ही प्रगट हो। मिथ्यादृष्टि जीव लोकोत्तर मार्ग मे अपनी बुद्धि लगाते है । परन्तु उसका रहस्य ना जानने से धर्म की प्राप्ति नही होती है । मोक्ष-मार्ग प्रकाशक मे लिखा है कि दिगम्बर जैन अनुयायी निरन्तर शास्त्रो का अभ्यास करता है, भगवान की आज्ञा मानता है, तब भी मिथ्यात्व का अभाव नही होता है। जिनागम मे जो निश्चय व्यवहाररूप वर्णन है उसका पता न होने से वह ससार का पात्र बना रहता है । [मोक्ष मार्ग प्रकाशक पृष्ठ १९३] जिसको अभी यह भी मालूम नहीं कि 'मै कौन हूँ ? मेरा क्या कार्य है ? कहाँ से मैं आया हूँ ?' और पढ लिया गौम्मटसार । कहता है कि कर्म के कारण जीव चक्कर काटता है - यह जिनागम के अर्थ का अनर्थ करता है। इसलिए हे भाई । जैसे-लौकिक कार्य मे जिसका अपने को पता नही, उसमे हम दखल नही देते है और जिस को उसका पता है उसकी बात मानते हैं, उसी प्रकार लोकोत्तर मार्ग मे भी धर्म गुरु से विनय से निश्चय-व्यवहार का रहस्य जानकर अपनी आत्मा का आश्रय ले, तो भला हो। प्रश्न ३६-रागादि को पुद्गल का क्यो कहाँ है ? उत्तर-(१) जैसे-लडका माँ का है परन्तु विवाह होने पर बह का पक्ष करे तो बहू का कहलाता है, उसी प्रकार रागादिक पुद्गल के निमित्त से होता है इसलिए रागादि को पुद्गल कहा है (१) जिसमे मिलना और बिछुडना हो, उसे पुद्गल कहते है, उसी प्रकार रागादि
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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