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प्रश्न ३३-जो जीव अपने ज्ञायक स्वभाव रूप सन्त बटी का आश्रय लेता है तो उसे क्या-क्या प्रगट होता है और किस-किसका अभाव होता है ?
उत्तर-~(१) द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भावरूप पाँच परावर्तन रूप ससार का अभाव हो जाता है। (२) चारो गतियो से विलक्षण पचमगति मोक्ष की प्राप्ति होती है। (३) पच परमेष्टियो मे उसका नाम आता है। (४) पचम परम पारिणामिक भाव का महत्व आ जाता है । (५) मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कपाय और योग पाँच कर्म बन्धन के कारण है उनका अभाव हो जाता है।
प्रश्न ३४-कर्म के उदय का क्या अर्थ है ?
उत्तर-उदय का अर्थ प्रगट है जो कर्म सत्ता मे पडा था, वह उदय मे आया अर्थात जो उदय में आता है, वह यह प्रगट करता है कि मैं जा रहा है। कर्म वडा सज्जन है। वह कहता है कि मैं जा रहा हू, तुम आगे ऐसी ओंधाई मत करना, जो मुझे आना पड़े।
लेकिन अज्ञानी जीव कर्म के उदय मे रागभाव करके अपना जीवन खोते रहते हैं। जैसे हमारे घर पर कोई मेहमान आवे हम उसकी पूछताछ ना करे तो वह जल्दी ही चला जाता है। वास्तव मे जव जीव पागलपन करता है तो उस समय कर्म का उदय निमित्त है। निमित्त विकार नही कराता है परन्तु जीव विकार करे, तो वहाँ कौन उपस्थित है उसका ज्ञान कराता है। __प्रश्न ३५-आजकल के पडित कहते हैं कि कर्म चक्कर कटाता है और गोम्मटसार आदि शास्त्रो मे भी लिखा है कि ज्ञानावरणीय कर्म का उदय ज्ञान को नहीं होने देता है कर्म के उदय से जीव भ्रमण करता है आदि ऐसा तो शास्त्रो मे लिखा है, क्या वह असत्य लिखा
उत्तर-शास्त्रो मे जो लिखा है वह तो सत्य है लेकिन उस कथन का क्या तात्पर्य हैं वह अज्ञानी नही जानता है