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की जडी-बूटी होती है । उसी के पास रहकर नोला साँप के साथ लडाई करता है । क्योकि यदि लडाई मे साप काट ले, तो उस नोलबेल बूटी को सूंघ लेने से उसका विष दूर हो जाता है । तो हर हालत मेनेवला साप को मार देता है, उसी प्रकार यह सारा ससार सर्परूप है और पुरुषार्थ करने वाला जीव नौला के समान है । ससार-जो अपने ज्ञायक स्वभाव को नही जानता है और संयोग और राग-द्व ेष मे उलझा रहता है इस बुद्धि का नाम ससार है ।
ससार सर्प के समान है। उसकी जब पुरुषार्थ करने वाले जोव के साथ लडाई चलती है । तो यह जीव अपने त्रिकाली अविनाशी आत्मा मे एकत्वबुद्धि करता है, तो अनादिकाल की ससार बुद्धि दूर हो जाती है । कहा है कि
सर्प रूप ससार है, नौल रूप नर जान | सन्त बुटी संयोग तें होत अहि-विषहाण |
यह ससार सर्परूप है और नौलारूपी पुरुषार्थ करने वाला जीव है । जब यह जीव ससार के विपय भोगो की अनुकूलता और प्रतिकूलता मे जलता है, तब उसको सतरूपी जडी-बूटी से सर्परूप जो मिथ्यात्व है, उसका नाश हो जाता है । यह जीव अनादिकाल से दुखी हो रहा है। उसका कारण केवल यही है कि इसे सन्तरूपी बटी नही मिली । सन्त रूपी बूटी जो अपना स्वभाव ही है । वह चारो गतियो मे भ्रमण नही करने देता है । इसका पता न होने से दुखी है जिसे अपनी सन्तरूपी बूटी (ज्ञायक स्वभावी) का अनुभव-ज्ञान होता है । वह कभी भी आकुलित नही होता है। सॉप और नेवला के दृष्टान्त से यह शिक्षा मिलती हैं, जो अपने ज्ञायक स्वभाव रूप बूटी का आश्रय लेता है उसे ससार मे कभी भी परिभ्रमण नही करना पडता है, क्योकि आत्मा सयोग, सयोगी भावो से, और भेदरूप व्यव - हार से भिन्न है ।