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________________ ( २३४ ) द्वप रूपी सांप चन्दन के समान शीतल आत्मा के ऊपर लिपटे हुए है, यदि यह जीव अपने ज्ञायक स्वभाव का टकारा मारे, तो मिथ्यात्व राग द्वेप रूपी अजगर और साँप सब स्वयं भाग जाते हैं । चदन के इच्छुक पुरुष के दृष्टान्त से यह शिक्षा मिलती है कि जैसे-चदन का इच्छक पुरुप अपने पास गरुड या मोर को रखता है तो वह चदन को प्राप्त कर लेता है। उसी प्रकार मोक्ष का इच्छक अपने साथ अपने ज्ञायक स्वभावी आत्मा को रखे, तो मिथ्यात्वराग द्वप कभी भी पास ना आवे । प्रश्न ३०-'कीचड मे पड़ा सोना' क्या शिक्षा देता है ? उत्तर-जैसे-कीचड मे सोना पडा हो, उसे कभी भी जग नही लगती, उसी प्रकार जो जीव अपने ज्ञायक स्वभावी आत्मा का अनुभव कर ले तो ससार की कोई भी ताकत चारो गतिरूप कीचड मे नही फसा सकता। इससे हमे यह शिक्षा मिलती है कि जिस प्रकार कीचड मे पडे सोने को जग नहीं लगती, उसी प्रकार जिसे अपने स्वभाव का अनुभव हो गया है, वह सम्यग्दृष्टि हो, गृहस्थ हो उसे मिथ्यात्वरूपी भूत कभी नहीं डसता। प्रश्न ३१-'अग्नि' हमे क्या शिक्षा देती है ? उत्तर-जैसे-अग्नि मे जो डालो, वह स्वाहा हो जाता है । अग्नि किसी अल्प-बहुत मूल्यवान वस्तु का ख्याल नहीं करती और जलने योग्य को जला ही देती है, उसी प्रकार हे आत्मा । तेरा कार्य ज्ञान है। तू क्यो व्यर्थ मे पर की करूँ-करूं की मान्यता मे वावला होकर पागल हो रहा है। अग्नि हमको यह शिक्षा देती है कि जिस प्रकार मै अपने जलाने के स्वभाव को नहीं छोडती, उसी प्रकार हे भव्य आत्मा | तुझे भी अपने ज्ञान कार्य को नहीं छोडना चाहिए । प्रश्न ३२-साप और नेवला हमे क्या शिक्षा देता है ? उत्तर-सॉप और नेवला एक दूसरे का दुश्मन होता है । जव नेवला साँप के साथ लडाई करता है । तो जंगल मे एक नोलवेल नाम
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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