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" तो उसके तत्काल ही टुकडे टुकडे हो जाते है और जलकर खाक हो जाता है। लेकिन उस उबलते हुए तेल मे जरा सा बावना चन्दन गेर दिया जावे, तो वह उसी समय ठण्डा हो जाता है, उसी प्रकार हे आत्मा 1 जब अपने बावना चन्दन रूप त्रिकाली स्वभाव का आश्रय लेवे, तब क्षण भर में अनन्त ससार का ताप समाप्त हो जाता है । यह जीव अनादि काल से एक-एक समय करके ससार ताप से दुखी होकर जल रहा है । इसको एक अपना स्वभाव ही ससार से पार होने मे महामंत्र है। बावना चन्दन यह शिक्षा देता है कि मैं जरा सा इतने उवलते तेल को गीतल वना देता हू तब हे आत्मा । क्या तुम अनादि काल के ताप को क्षण भर मे शान्त नही कर सकते ? यदि यह आत्मा एक क्षण के लिए अपने स्वभाव का आश्रय ले, तो तुरन्त अनादि का जन्म-मरण समाप्त हो जावे, कहा है
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क्षणभर निज रस को पी चेतन, मिथ्या मल को धो देता है । काषायिक भाव विनष्ट किए निज आनन्द अमृत पीता है ॥ प्रश्न २६ - ' लकड़ी' क्या शिक्षा देती है ?
उत्तर- एक मनुष्य लकडी को देखकर कहने लगा, कि ' हे लकडी क्या तुझे खवर है तेरा तिरने का स्वभाव है, परन्तु तू लोहे का साथ करेगी तो डूब जावेगी ।" इस पर लकडी बोली, अरे मनुष्य । हम तिरे या डूबे, उसमे हमको कोई भी दुख-सुख नही, इसलिए तू हमारी चिन्ता किसलिए करता है, तेरा तिरने का स्वभाव है उसकी क्या तुझे खबर है ? तेरा तिरने का स्वभाव होने पर भी, पर का सग मान करके ससार समुद्र मे क्यों डूब रहा है ? क्यो दुखी हो रहा है ? इसलिए तू हमारी चिन्ता छोडकर और पर की भी चिन्ता छोडकर, अपने त्रिकाली ज्ञायक स्वभाव को पर से पृथक जानकर उसी की भावना कर, जिससे तू ससार समुद्र से पार होकर सिद्ध परमात्मा बन जायेगा | लकडी हमे शिक्षा देती है कि जैसे- लकडी अपने स्वभाव