________________
को खूब औटा करके गुड बनता है । यह हमेशा मीठा ही लगता है। उसी प्रकार हे आत्मा । जब तुम्हे गन्ने के समान कोई पेलता नहीं,
औटाता नहीं। तब तुम व्यर्थ मे क्यो आकुलित होते हो? इसलिए हे आत्मन् । तुम त्रिकाली ज्ञायक स्वभाव का आश्रय लो, तो हमेशा गन्ने के समान मीठा ही स्वाद आवेगा और चारो गतियो का भवभ्रमण मिट जावेगा । गन्ना हमे यह शिक्षा देता है कि जिस प्रकार में अपने मीठेपने के स्वभाव को कितनी ही प्रतिकूलता आने पर भी नही छोडता, तब तुम भी अपने ज्ञाता-दृष्टा स्वभाव को कितनी ही प्रतिकूलता आने पर भी मत छोडो।
प्रश्न २४-सोना क्या शिक्षा देता है ?
उत्तर-जैसे-सोने को गलाओ तो वह मैल को छोड़ देता है, उसी प्रकार हे आत्मा । तुम्हे कोई सोने के समान गलाता नही, तपाता नही, तो फिर तुम क्यो आकुलित होते हो ? सोना सुनार से. कहता है कि
हे हेमकार, पर दु.ख विचारमूढ,
कि मां मुहः क्षिपसि वार शतानि वन्हौ। दग्धे पुनर्मयि भवन्ति गुणातिरेको,
लाभः पर खलु मुखे तब भस्म पात. ।। अर्थ-हे सुनार, तुम मुझे बार-बार अग्नि में क्यो तपाते हो? तुम मुझे चाहे कितनी ही बार अग्नि मे तपाओ, उससे मेरे मे तो शुद्धि की वृद्धि ही होती है लेकिन तुझे मुंह मे राख के अलावा कुछ भी लाभ नहीं मिलेगा। सोने से हमे यह शिक्षा मिलती है कि हे आत्मा | जिस प्रकार सोने पर मुसीबते आने पर वह शुद्ध ही होता जाता है, उसी प्रकार सासारिक प्रतिकूलता आने पर तुम भी अपने स्वभाव की दृष्टि करोगे, तो तुम्हे शुद्धोपयोग की ही प्राप्ति होगी।
प्रश्न २५–'बावना चन्दन' क्या शिक्षा देता है ? उत्तर-जैसे-गरम उबलते हुए तेल मे यदि नारियल गेरा जावे।