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________________ ( २२६ ) आजीविकादि प्रयोजन विचारना योग्य नही है। जो जीव रुपयापैसा लेकर आजीविका आदि के अर्थ धर्म की बाते करते है वे पापी है। [मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ २१६] प्रश्न १७-वर्तमान मे ज्ञानी जीव तो मिलते नहीं तब रुपयापैसा देकर हम शास्त्र-अभ्यास करे, तो क्या नुकसान है ? उत्तर-श्रद्धानादिक गुणो के धारी वक्ताओ के मुख से ही शास्त्र "सूनना । इस प्रकार के गुणो के धारक मुनि अथवा श्रावक-सम्यग्दृष्टि उनके मुख से तो शास्त्र सुनना योग्य है और पद्धतिवुद्धि से अथवा शास्त्र सुनने के लोभ से श्रद्धानादिक गुणो से रहित पापी पुरुषो के मुख से शास्त्र सुनना उचित नही है क्योकि जिसको शास्त्र बाचकर आजिविका आदि लौकिक कार्य साधने की इच्छा हो वह आशावान यथार्थ उपदेश नहीं दे सकता। इसलिए मिथ्यादृष्टि चाहे वह कोई क्यो ना हो उससे उपदेश आदि नही सुनना चाहिए। जैसे-लौकिक मैं जिसको जो कार्य आता हो, वही उस कार्य को सुचारू रूप से कर सकता है, दूसरा नही, उसी प्रकार सच्चे गुरुगम विना शास्त्रो का अभ्यास अनर्थकारी है । [मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ १७] प्रश्न १८-अनादिकाल की भूल कैसे मिटे ? । उत्तर-जहाँ भूल है वहाँ भूल को देखना, यही भूल को मिटाने का एकमात्र उपाय है। (१) जैसे-मुंह पर दाग है और सामने शीगा है। यदि दाग को मिटाने के लिए हम शीशे को रगडे तो क्या मुह का दाग दूर हो जावेगा ? कभी भी नही, उसी प्रकार गलती तो अपनी पर्याय मे है उसे दूर करने के लिए दूसरो का दोष देखें तो • क्या कभी गलती दूर होवेगी ? कभी भी दूर नही होगी। (२) जैसे-सामने शीशा है यदि हमारा मुह टेढा है, तो शीशे मे 'टेढा दिखायी देगा उसमे शीशे का कोई दोष नही; यदि हम मुह को टेढा नही देखना चाहते तो उसका उपाय मुह को सीधा करना है, उसी प्रकार दोष तो अपने मे है देखते है कर्म का या परद्रव्य का।
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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