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________________ आरपार निकल गई । दूसरी पुतली के कान में गेरी, वह मुह से निकल गई और तीसरी पुतली के कान में गेरी, तो अन्दर समा गई । मंत्री बडा प्रसन्न हुआ । राज दरवार मे आकर मत्री ने तीसरी पुतली की कीमत एक लाख रुपया लगाया, बाकी दो पुतलियो की एक कानी फूटी कौडी भी नही । मत्री से यह बात स्पष्ट करने को कहा कि जवकि तीनो पुतलियाँ एक सी हैं तो दो की कीमत कुछ नही और तीसरी की एकलाख रुपया क्यो है ? मन्त्री ने कहा, न० १ को पुतली से जा कुछ कहा जावे तो यह दूसरे कान से जभी निकाल देती है । न० २ की पुतली जो कुछ सुनती है, वह दूसरो को सुना देती है । न ३ की पुतली जो कुछ सुनती है, वह अपने मे पचा लेती है उसी प्रकार ( १ ) जो जीव शास्त्र पढता हैं, या सुनता है, इधर सुना, उबर निकाल दिया, या पता ही नहीं, क्या सुना या क्या पढा, यह व्यर्थ है । ( २ ) जो जीव शास्त्र इसलिए पढता है या सुनता है, कि मै सुनकर दूसरो को बताऊ, तो लोग मेरा मान आदर करे, यह भी व्यर्थ है । (३) जो जीव शास्त्राभ्यास अपने कल्याण के लिए पढता है या सुनता है. अपने जीवन मे घटित करता है, वह ही धन्य है । जैसा वस्तु का स्वरूप है वैसा का वैसा निर्णय करने से मद कषाय हो जाती है ओर विशेष पुरुषार्थ करे तो सम्यग्दर्शन की प्राप्ति हो जाती है । इसलिए शास्त्राभ्यास हमेशा अपने कल्याण के निमित्त ही कार्यकारी है। प्रश्न १६ - जैन धर्म का सेवन किसलिए है और किसलिए नहीं है ? उत्तर - जैनधर्म का सेवन तो ससार नाश के लिए किया जाता है परन्तु जो जीव शास्त्र पढकर सुनाकर, पूजा करके, सिद्धचक आदि का पाठ करके रुपया पैसा लेते हैं वह तो पापी भी है और - मिथ्यादृष्टि तो हैं ही । इसलिए पात्र जीव हिंसादि से आजीविकादि के अर्थ व्यापारादि करता है तो करे, परन्तु पूजा आदि कार्यों मे तो
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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