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होता है कि बाह्य सयोग अनुसार राग-द्वेष का माप नही है पर मे एकत्व बुद्धि ही एक मात्र दुख का कारण है ।
प्रश्न १४ – क्या बाह्य राग-द्वेष के अनुसार ज्ञानी अज्ञानी का माप है ?
उत्तर— नही है, क्योकि ( १ ) एक द्रव्यलिंगी मुनि है उसको कषाय बहुत मन्द है उसके पास कुछ भी परिग्रह नहीं, फिर भी वह अज्ञानी है (२) और दूसरा ज्ञानी चक्रवर्ती है जो ९६ हजार स्त्रियो के वृन्द मे बैठा हो, कभी लडाई भी लडता हो, तीर पर तीर चलाता हो, उसे वाह्य मे तीव्र कषाय देखने मे आता है और बाह्य सयोग भी बहुत देखने मे आता हो, फिर भी वह ज्ञानी है । इसलिए यह सिद्ध हुआ कि बाह्य राग-द्वेष अनुसार ज्ञानी अज्ञानी का माप नही है । इसमे से दो बोल निकलते हैं-- ( १ ) बाह्यसयोग अनुसार राग-द्वेष का माप नही है । (२) बाह्य रागद्वेष अनुसार ज्ञानीअज्ञानी का माप नही है ।
क्योकि मोक्षमार्ग प्रकाशक है कि 'परम कृष्ण लेश्यारूप तीव्र लेश्यारूप मन्द कषाय हो वहाँ रहता है, क्योकि तीव्र - मन्द की नही है |
अध्याय दूसरा पृष्ठ ४० मे लिखा कषाय हो वहाँ भी और शुक्ल भी निरन्तर चारों ही का उदय अपेक्षा अनन्तानुबन्धी आदि भेद
प्रश्न १५ - शास्त्राभ्यास किसलिए और कैसे करना चाहिए ? उत्तर – एक कारीगर ने तीन पुतलियाँ बनायी। तीनो देखने मे एक सी लगती थीं। वह उनको बेचने के लिए राजा के दरबार मे पहुचा । राजा ने मंत्री से तीनो का मूल्य लगाने के लिए कहा। लेकिन मंत्री की समझ मे नही आया । आठ दिन बाद तीनो पुतलियो की कीमत बताने को मत्री ने अनुमति माँगी। उनकी कीमत बताने के लिए आज सातवाँ दिन समाप्त होने को है परन्तु मत्री की कुछ समझ मे नही आया । मन्त्री ने एक सलाई एक पुतली के कान में गेरी, वह